झारखंड में पेसा कानून (PESA Act) को लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने अपने-अपने विचार स्पष्ट किए हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार पेसा कानून को जनता की भावना के अनुरूप लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है. वहीं, राज्यपाल ने नई सरकार से पेसा नियमावली को शीघ्र लागू करने की अपेक्षा जताई है.
सीएम हेमंत सोरेन का स्टैंड
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मंगलवार को प्रोजेक्ट भवन में पत्रकारों से बातचीत करते हुए पेसा कानून पर राज्य सरकार के दृष्टिकोण को साझा किया. उन्होंने कहा, “हमारी सरकार जनता की भावना के अनुरूप काम करती है. पेसा कानून पर भी कई चर्चाएं हो चुकी हैं, और अब इसे जल्द ही लोगों के बीच लाया जाएगा. हमारा उद्देश्य है कि राज्य के अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचे और वे विकास का हिस्सा बनें”. उन्होंने नए वर्ष 2025 की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि सरकार राज्य को बेहतर दिशा देने के लिए प्रतिबद्ध है. “हम 2024 के अंतिम पड़ाव पर हैं. आने वाला वर्ष राज्यवासियों के लिए मंगलमय हो, यह हमारी कामना है. हम चाहते हैं कि हर व्यक्ति विकास के इस सफर में साथ चले और राज्य को समृद्ध और खुशहाल बनाने में योगदान दे”.
पेसा कानून: क्या है मुख्यमंत्री का विजन?
पेसा कानून (PESA Act) झारखंड में पारंपरिक स्वशासन और जनजातीय अधिकारों को सशक्त बनाने का माध्यम है. मुख्यमंत्री ने कहा कि इस कानून के तहत पारंपरिक व्यवस्थाओं को संरक्षित करने और ग्रामीण विकास को प्राथमिकता देने का लक्ष्य है. उन्होंने भरोसा दिलाया कि यह कानून जनता की अपेक्षाओं और परंपराओं को ध्यान में रखते हुए लागू किया जाएगा.
राज्यपाल का बयान: पेसा नियमावली लागू करने की अपेक्षा
राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने झारखंड में पेसा नियमावली लागू करने की जरूरत पर बल दिया. उन्होंने पूर्वी सिंहभूम के चाकुलिया में आयोजित ‘परंपरागत स्वशासन व्यवस्था’ कार्यक्रम के दौरान वर्चुअल माध्यम से संवाद करते हुए कहा, “पेसा अधिनियम के तहत पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था को विशेष शक्तियां दी गई हैं. लेकिन झारखंड में अब तक पेसा नियमावली लागू नहीं हो सकी है. मुझे उम्मीद है कि नई सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाएगी”.
पारंपरिक स्वशासन का महत्व
राज्यपाल ने झारखंड की जनजातीय संस्कृति में पारंपरिक स्वशासन की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि यह व्यवस्था न केवल जनजातीय संस्कृति को संरक्षित करती है, बल्कि ग्रामीण समाज की सामान्य समस्याओं का समाधान भी करती है. उन्होंने मानकी-मुंडा, पाहन, प्रधान और मांझी जैसी व्यवस्थाओं का उल्लेख किया, जो सदियों से जनजातीय समुदाय का मार्गदर्शन कर रही हैं. राज्यपाल ने कहा, “इस व्यवस्था पर जनजातीय समाज का अटूट विश्वास रहा है. इसे और अधिक सशक्त बनाना आवश्यक है. पारंपरिक स्वशासन के माध्यम से न केवल सामाजिक कुरीतियों को दूर किया जा सकता है, बल्कि सामाजिक न्याय की स्थापना भी संभव है. यदि यह व्यवस्था प्रभावी ढंग से काम करे, तो डायन प्रथा जैसी कुप्रथाओं को खत्म किया जा सकता है”.
जनजातीय समाज को जागरूक करने का आह्वान
राज्यपाल ने नागरिकों से जनजातीय समाज को जागरूक करने और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए निरंतर संवाद करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ प्रत्येक ग्रामवासी तक पहुंचना चाहिए. “राजभवन के द्वार सभी नागरिकों के लिए खुले हैं. लोग अपनी समस्याओं को लेकर किसी भी समय संपर्क कर सकते हैं. हम पांचवीं अनुसूची के तहत अपने दायित्वों का निर्वहन करने के लिए तत्पर हैं”.
पेसा अधिनियम की प्रासंगिकता
पेसा अधिनियम, जिसे “पंचायती राज (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996” के नाम से भी जाना जाता है, अनुसूचित क्षेत्रों में पारंपरिक स्वशासन को मान्यता और सशक्तिकरण प्रदान करता है. झारखंड जैसे जनजातीय बहुल राज्य में, यह कानून विशेष रूप से महत्वपूर्ण है. इसके तहत जनजातीय समुदायों को भूमि, जल और जंगल के अधिकार मिलते हैं, साथ ही उनकी पारंपरिक व्यवस्थाओं को कानूनी मान्यता दी जाती है.
क्या हैं चुनौतियां?
हालांकि, झारखंड में पेसा नियमावली अब तक लागू नहीं हो सकी है, जो इस अधिनियम की प्रभावी कार्यान्वयन में एक बड़ी बाधा है. राज्यपाल और मुख्यमंत्री दोनों ने इस दिशा में तेजी लाने की आवश्यकता पर बल दिया है. राज्यपाल ने कहा कि पेसा नियमावली के लागू होने से पारंपरिक स्वशासन और मजबूत होगा और जनजातीय समाज को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने में मदद मिलेगी. उन्होंने सरकार से अपेक्षा की कि इस कानून को जल्द से जल्द लागू किया जाए ताकि जनजातीय समुदाय को इसका पूर्ण लाभ मिल सके.
मुख्यमंत्री और राज्यपाल की अपेक्षाएं
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि राज्य सरकार पेसा कानून को लागू करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है. वहीं, राज्यपाल ने नई सरकार से शीघ्र पेसा नियमावली लागू करने की उम्मीद जताई. दोनों नेताओं का मानना है कि यह कानून जनजातीय समाज के सशक्तिकरण और राज्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.