छठ पूजा 2024 में इस बार महंगाई ने त्योहार की तैयारी कर रहे लोगों को कड़ी चुनौती दी है. पूजा के लिए जरूरी सामानों की कीमतें आसमान छू रही हैं. खासतौर पर फल-फूल और पूजा के अन्य सामग्रियों के दाम बढ़ गए हैं. इन बढ़ती कीमतों के बीच भी लोगों में छठ पर्व को लेकर जोश और आस्था बरकरार है. लोग महंगाई को नजरअंदाज करते हुए अपनी पूरी श्रद्धा के साथ छठ पर्व की तैयारियों में लगे हुए हैं.
बाजार में महंगाई का असर
छठ पूजा के लिए इस समय बाजारों में जबरदस्त भीड़ देखने को मिल रही है. बाजार में सबसे ज्यादा डिमांड फलों और फूलों की है, जिनकी कीमतों में इस बार काफी बढ़ोतरी हुई है. मटर छीमी और परेरा जैसे सब्जियों के दाम भी महंगाई की मार झेल रहे हैं. ये सब्जियां 120 रुपये पाव यानी 400 रुपये किलो के भाव पर बिक रही हैं. वहीं केले की कांधी इस बार 400 से 600 रुपये तक बिक रही है. यह भाव पिछले सालों की तुलना में काफी ज्यादा है.
केला और अन्य फलों के बढ़े दाम
इस साल केला मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश और बंगाल से लाया गया है. व्यापारियों का कहना है कि पिछले साल की तुलना में इस साल 20% अधिक माल बाजार में पहुंचा है, फिर भी कीमतें नियंत्रण में नहीं हैं. इसका कारण त्योहारी सीजन में फलों की मांग का अचानक बढ़ जाना है. थोक बाजार में केला महंगा होने के बावजूद पूजा के महत्व के कारण लोग इसे खरीद रहे हैं. इसके अलावा कश्मीर से सेब, महाराष्ट्र से संतरा, आंध्र और बंगाल से डाभ, और आंका से नारियल बाजार में लाए जा रहे हैं.
अन्य फलों और सब्जियों की कीमतें
केले के अलावा अन्य फलों और सब्जियों के दामों में भी तेजी आई है. सकरकंद 80 रुपये प्रति किलो, बड़ा बेर 120 रुपये प्रति किलो, आंवला 80 रुपये प्रति किलो, नया अदरक 120 रुपये प्रति किलो, मूली 60 रुपये प्रति किलो, तीनफला 60 रुपये प्रति पाव, और अनानास 60 रुपये प्रति पीस बिक रहा है. महंगाई के बावजूद, लोग अपनी जरूरत का सामान जुटाने के लिए बाजार में जुटे हुए हैं. हर कोई छठ पूजा के लिए फलों, फूलों और अन्य पूजा सामग्रियों की खरीदारी में व्यस्त है. ऐसा लगता है जैसे पूरा शहर छठ पर्व की तैयारियों में लगा हुआ है.
आस्था पर महंगाई का असर
बाजार में बढ़ती महंगाई के बावजूद लोगों की आस्था में कोई कमी नहीं दिख रही है. छठ पूजा बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, और भारत के कई अन्य राज्यों में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है. यह पर्व न केवल भगवान सूर्य की उपासना का त्योहार है, बल्कि इसमें परिवार और समाज के प्रति श्रद्धा और समर्पण की भावना भी होती है. चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व के हर दिन का विशेष महत्व होता है. लोग अपनी श्रद्धा के साथ इस पर्व के प्रत्येक दिन की विधि को पूरा करते हैं.
छठ महापर्व के चार पवित्र दिन
इस साल 5 नवंबर को नहाय-खाय के साथ छठ पर्व की शुरुआत हुई. नहाय-खाय के दिन व्रती, यानी व्रत करने वाले लोग, पवित्रता का संकल्प लेते हैं और लौकी की सब्जी तथा चावल का भोजन करते हैं. इसके बाद दूसरे दिन खरना मनाया जाता है. इस दिन व्रती पवित्र नदियों में स्नान करके भोजन बनाते हैं. इस भोजन में विशेष पकवान बनाए जाते हैं, जिसे खाने के बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू किया जाता है. इस दौरान व्रती पानी तक नहीं पीते हैं, जो उनकी आस्था और तप का प्रतीक है.
अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ्य
आज छठ पर्व का तीसरा दिन है, और व्रती अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ्य देंगे. यह अनुष्ठान बहुत ही पवित्र और खास होता है, जिसमें लोग जल में खड़े होकर सूर्य देवता की उपासना करते हैं. शाम के समय सूर्य को पहला अर्घ्य अर्पित किया जाता है. इसके लिए नदी, तालाब या किसी जलाशय के किनारे विशेष सजावट की जाती है, और व्रती अपने परिवार और दोस्तों के साथ वहां पहुंचते हैं. छठ पर्व में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है, क्योंकि सूर्य को जीवनदायी ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है.
उदीयमान सूर्य को दूसरा अर्घ्य और पर्व का समापन
छठ पूजा का चौथा और अंतिम दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ पूरा होता है. इस दिन तड़के ही व्रती जलाशय के किनारे इकट्ठा होते हैं और सूर्योदय का इंतजार करते हैं. सूर्योदय के समय जल में खड़े होकर सूर्य को दूसरा और अंतिम अर्घ्य अर्पित किया जाता है. यह पर्व की समाप्ति का प्रतीक होता है और इस तरह चार दिनों के व्रत का समापन होता है. इस दिन व्रतियों को भोजन करवाया जाता है और फिर वे अपने परिवार के साथ मिलकर पर्व का उत्सव मनाते हैं.