झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 को लेकर सियासी सरगर्मी तेज हो चुकी है, और इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन का बयान सुर्खियों में है. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपनी पोस्ट में वर्तमान झारखंड सरकार को ‘आदिवासी विरोधी’ करार देते हुए सरकार की नीतियों पर गंभीर सवाल उठाए हैं. चंपाई सोरेन का कहना है कि वर्तमान सरकार आदिवासी हितों की उपेक्षा कर रही है और घुसपैठियों को बढ़ावा दे रही है. उन्होंने विशेष रूप से झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) पर निशाना साधा, जिसके प्रमुख हेमंत सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री हैं. चंपाई सोरेन ने अपने पोस्ट में जेएमएम पर आरोप लगाते हुए कहा कि आदिवासियों के मुद्दों की अनदेखी की जा रही है, और सरकार के निर्णयों से आदिवासी समाज प्रभावित हो रहा है.
मंडल मुर्मू का बीजेपी में शामिल होना
चंपाई सोरेन ने अपनी पोस्ट में जेएमएम के प्रमुख हेमंत सोरेन के प्रस्तावक और संथाल हूल के महानायक सिदो-कान्हू के वंशज मंडल मुर्मू के बीजेपी में शामिल होने का भी जिक्र किया. उन्होंने इसे जेएमएम के लिए एक बड़ा झटका बताते हुए कहा कि आदिवासी समाज के मुद्दों की उपेक्षा के कारण मंडल मुर्मू ने यह निर्णय लिया. सोरेन ने पूछा कि आखिर क्यों एक ऐसा व्यक्ति, जो आदिवासी समाज के मुद्दों को उठाने में सक्रिय था, भाजपा में शामिल हो गया? उन्होंने इसे वर्तमान सरकार की असफलता का प्रतीक बताया और कहा कि आदिवासी समुदाय की अपेक्षाएं इस सरकार से पूरी नहीं हो रही हैं.
संथाल परगना में घुसपैठियों का कब्जा
चंपाई सोरेन ने संथाल परगना की स्थिति पर चिंता जताई और कहा कि यहां आदिवासी समुदाय अपने ही क्षेत्र में अल्पसंख्यक हो रहा है. उन्होंने दावा किया कि संथाल परगना के गांवों में बांग्लादेशी घुसपैठियों का कब्जा हो रहा है, जो आदिवासी जमीन पर अवैध निर्माण कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इन घुसपैठियों के मकानों पर एक खास राजनीतिक दल का झंडा लगा हुआ है, जिससे पता चलता है कि उन्हें राजनीतिक समर्थन प्राप्त है. सोरेन ने आरोप लगाया कि घुसपैठियों की उपस्थिति से आदिवासी समुदाय की जमीन, उनके घर और उनकी सुरक्षा खतरे में हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे हालात में सरकार की निष्क्रियता से यह साबित होता है कि आदिवासी हित उनके एजेंडे में नहीं है.
आदिवासियों के अधिकारों की अनदेखी
चंपाई सोरेन ने आगे लिखा कि जिस माटी और अस्मिता के लिए हमारे पूर्वजों ने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी थी, आज उसी माटी पर घुसपैठियों का कब्जा है. उन्होंने पाकुड़, साहिबगंज, जिकरहट्टी, मालपहाड़िया, और तलवाडांगा जैसे कई गांवों का जिक्र किया जहां आदिवासी जनसंख्या बहुत कम हो चुकी है और बाहरी लोगों ने उनकी जमीन और संपत्ति पर कब्जा जमा लिया है. सोरेन का कहना है कि संथाल परगना के गांवों में कई आदिवासी परिवार अपनी जमीन छोड़ने पर मजबूर हैं. उन्होंने इसे आदिवासी समाज के अस्तित्व के लिए एक गंभीर चुनौती बताया.
कोर्ट में सरकार का झूठा एफिडेविट
सोरेन ने अपने पोस्ट में यह भी लिखा कि वर्तमान सरकार ने हाई कोर्ट में एक झूठा एफिडेविट फाइल किया, जिसमें आदिवासी हितों को नजरअंदाज किया गया है. जब कोर्ट ने मामले की जांच के लिए एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी गठित करने का आदेश दिया, तो सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी. सोरेन के अनुसार, यह सरकार के इरादों को स्पष्ट करता है कि उनकी प्राथमिकता आदिवासियों की सुरक्षा नहीं है, बल्कि घुसपैठियों को बचाना है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इस क्षेत्र में घुसपैठियों की वजह से संथाल परगना का इलाका अपराध का गढ़ बन गया है. यहां साइबर अपराध, नशे के कारोबार, और सोने की तस्करी जैसे अपराध बढ़ रहे हैं, जिसके चलते देशभर की पुलिस यहां छापेमारी करती रहती है.
मंडल मुर्मू को धमकियां और आदिवासी समाज की चिंता
चंपाई सोरेन ने कहा कि मंडल मुर्मू, जो भाजपा में शामिल हो गए हैं, उन्हें लगातार धमकियां मिल रही हैं. उनके खिलाफ पोस्टर लगाए जा रहे हैं और उन्हें डराने की कोशिश की जा रही है. सोरेन ने इसे आदिवासी समाज को चुप कराने का प्रयास करार दिया और कहा कि जो लोग झूठे आदिवासी हितैषी बने हुए हैं, उन्हें अब आदिवासी समाज की सच्चाई सामने आने का डर सताने लगा है. उन्होंने कहा कि वे लोग नहीं चाहते कि आदिवासी समाज उनके असली चेहरे को देख सके और उनकी सच्चाई सबके सामने आ जाए.
कांग्रेस को बताया आदिवासी विरोधी
चंपाई सोरेन ने कांग्रेस को भी आदिवासी विरोधी करार दिया. उन्होंने कहा कि झारखंड आंदोलन के समय कांग्रेस ने कई बार आदिवासी आंदोलनकारियों पर गोलियां चलवाईं और आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया. इसके अलावा, 1961 की जनगणना में आदिवासी धर्म कोड को हटाने का फैसला भी कांग्रेस के समय में लिया गया था, जो आदिवासी समाज के लिए एक बड़ा झटका था. सोरेन ने कहा कि कांग्रेस के सहयोगियों से भी झारखंड के आदिवासी समाज को ज्यादा उम्मीद नहीं रखनी चाहिए. उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने पेसा कानून को लागू करने में भी बाधा डाली और आदिवासी प्राथमिक शिक्षा को लेकर भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया.