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चंपई सोरेन की बगावत से झामुमो में उथल-पुथल, भाजपा के साथ बना सकते हैं नया समीकरण….

झारखंड की राजनीति में इन दिनों सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा के भीतर बगावत की सुगबुगाहट सुनाई दे रही है. झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन, जो झामुमो के वरिष्ठ नेता भी हैं, अब पार्टी से अलग होकर अपनी खुद की राजनीतिक राह तलाशने में जुटे हैं. उनकी गतिविधियां इस बात की ओर इशारा कर रही हैं कि वे झामुमो से अलग होकर एक नया राजनीतिक सफर शुरू कर सकते हैं.

धीरे-धीरे खोल रहे हैं पत्ते

चंपई सोरेन पिछले कुछ समय से राजनीति के गलियारों में हलचल पैदा कर रहे हैं. वे सधे हुए कदमों से अपनी रणनीति बना रहे हैं और धीरे-धीरे अपने पत्ते खोल रहे हैं. नई दिल्ली प्रवास के दौरान उन्होंने एक लिखित बयान जारी कर कई राजनीतिक संकेत दिए. इस बयान से उन्होंने न केवल झामुमो के भीतर उथल-पुथल मचाई, बल्कि अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर भी संकेत दिए.

तीसरे विकल्प की तलाश

चंपई सोरेन ने अपने बयान में बताया कि उनके सामने तीन विकल्प हैं. पहला, राजनीति से संन्यास लेना; दूसरा, अपना नया दल बनाना; और तीसरा, किसी नए राजनीतिक साथी को चुनना. उन्होंने यह भी साफ किया कि पहला विकल्प, यानी राजनीति से संन्यास लेना, अब उनके लिए समाप्त हो चुका है. इसका मतलब यह है कि चंपई सोरेन अब राजनीति से संन्यास नहीं लेंगे. अब, वे अपने समर्थकों के साथ मिलकर दूसरे और तीसरे विकल्प पर चर्चा कर रहे हैं. वे झामुमो की ताकत और कमजोरियों को अच्छी तरह समझते हैं, खासकर आदिवासी समुदाय में पार्टी की गहरी पैठ का उन्हें पूरा अंदाजा है. इसीलिए वे अपने प्रभाव वाले इलाकों में जाकर जनता के बीच अपने समर्थन का आकलन कर रहे हैं.

भाजपा के साथ बढ़ते संबंध

चंपई सोरेन की गतिविधियों से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि वे भाजपा के साथ मिलकर झामुमो को चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं. भाजपा की रणनीति यही है कि चंपई सोरेन को अपने साथ लेकर झामुमो के जनाधार में सेंधमारी की जाए. खासकर कोल्हान प्रमंडल, जो चंपई सोरेन का प्रभाव क्षेत्र है, भाजपा के लिए महत्वपूर्ण है. 2019 के विधानसभा चुनाव में इस प्रमंडल की 14 सीटों में से एक भी सीट भाजपा नहीं जीत पाई थी. भाजपा को उम्मीद है कि अगर चंपई सोरेन उनके साथ आते हैं तो इस स्थिति में बदलाव आ सकता है. यही वजह है कि जब चंपई सोरेन को उनके पद से हटाया गया, तब भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं ने उनके साथ एकजुटता दिखाई. इसमें भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी और पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा शामिल हैं, जो झारखंड में तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं.

भाजपा की शीर्ष रणनीति

चंपई सोरेन को भाजपा में शामिल करने का निर्णय भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और झारखंड विधानसभा चुनाव के प्रभारी बनाए गए शिवराज सिंह चौहान और हिमंत बिस्वा सरमा की सहमति के बिना संभव नहीं था. भाजपा के ये प्रमुख नेता भी मानते हैं कि चंपई सोरेन का समर्थन मिलने से झारखंड में भाजपा की सत्ता में वापसी की राह आसान हो सकती है.

अभी कोई विधायक साथ नहीं, लेकिन जनता का समर्थन

जब चंपई सोरेन दिल्ली की ओर रवाना हुए थे, तो यह संभावना जताई जा रही थी कि उनके साथ कम से कम चार विधायक भी जा सकते हैं. लेकिन अब यह साफ हो गया है कि फिलहाल कोई विधायक उनके साथ नहीं है. इन विधायकों ने हेमंत सोरेन से मुलाकात कर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है. हालांकि, राजनीति में कुछ भी संभव है और आगे चलकर स्थिति बदल भी सकती है. इस बीच, चंपई सोरेन लगातार अपने प्रभाव वाले इलाकों में जनसभाएं और बैठकें कर रहे हैं. इन सभाओं में भारी भीड़ उमड़ रही है, जिससे उनके समर्थक और रणनीतिकार उत्साहित हैं. यह भीड़ इस बात का संकेत देती है कि चंपई सोरेन के पास अभी भी जनता का समर्थन है और वे झामुमो से अलग होकर अपनी खुद की राजनीतिक राह बनाने में सफल हो सकते हैं.

राजनीतिक भविष्य की संभावनाएं

चंपई सोरेन के इस कदम से झारखंड की राजनीति में एक नया मोड़ आ सकता है. झामुमो से अलग होकर वे नया राजनीतिक दल बना सकते हैं या फिर भाजपा के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतर सकते हैं. भाजपा के लिए भी यह मौका है कि वे चंपई सोरेन के जरिए झामुमो के वोट बैंक में सेंध लगा सकें.

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