झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने आदिवासी सरना धर्म और धर्म परिवर्तन के खिलाफ बड़े जन आंदोलन की शुरुआत करने की घोषणा की है. उन्होंने कहा कि यह आंदोलन ओडिशा से शुरू होगा और धीरे-धीरे अन्य राज्यों तक पहुंचेगा. इस दौरान उन्होंने कांग्रेस पर भी तीखा हमला बोला और इसे आदिवासी विरोधी पार्टी करार दिया.
धर्म परिवर्तन के खिलाफ बड़ा आंदोलन
पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने हाता में आयोजित प्रेस वार्ता में कहा कि वे धर्म परिवर्तन के खिलाफ जन जागरूकता फैलाने के लिए एक बड़े आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “आज से मैं धर्म परिवर्तन और आदिवासी सरना धर्म को बचाने के लिए एक बड़े जन आंदोलन की शुरुआत कर रहा हूं. इस आंदोलन की शुरुआत ओडिशा से होगी.“ चंपई सोरेन अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ ओडिशा के लिए रवाना हो गए, जहां वे आदिवासी समाज को धर्मांतरण के खतरे के प्रति जागरूक करेंगे और सरना धर्म को बचाने का संदेश देंगे. उन्होंने कहा कि यह आंदोलन झारखंड, बिहार, बंगाल और अन्य राज्यों तक पहुंचेगा, जहां आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं.
1967 में इंदिरा गांधी सरकार में आया था बिल
चंपई सोरेन ने कहा कि यह मुद्दा नया नहीं है, बल्कि 1967 में सांसद कार्तिक उरांव ने इंदिरा गांधी सरकार में धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए एक विधेयक पेश किया था. इस विधेयक को 322 लोकसभा सांसदों और 26 राज्यसभा सांसदों का समर्थन मिला था, लेकिन यह पास नहीं हो सका. उन्होंने कहा कि 1967 में कार्तिक उरांव ने ‘डिलिस्टिंग प्रस्ताव’ पेश किया था, जिसमें कहा गया था कि जो लोग धर्म परिवर्तन कर चुके हैं, उन्हें अनुसूचित जनजाति (ST) के तहत मिलने वाले आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए. इस प्रस्ताव को संसदीय समिति के पास भेजा गया और 1969 में समिति ने अपनी सिफारिशें दीं. इसमें स्पष्ट कहा गया था कि जो व्यक्ति आदिवासी धर्म और परंपराओं को त्यागकर ईसाई या इस्लाम धर्म अपनाता है, उसे अनुसूचित जनजाति का लाभ नहीं मिलना चाहिए.
कार्तिक उरांव ने इंदिरा गांधी को लिखा था पत्र
इसके बाद भी जब कोई निर्णय नहीं लिया गया, तो कार्तिक उरांव ने 322 लोकसभा और 26 राज्यसभा सांसदों के हस्ताक्षरों के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को एक पत्र सौंपा था. इसमें विधेयक को स्वीकार करने की अपील की गई थी. लेकिन कांग्रेस सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया. चंपई सोरेन ने कहा कि यह करोड़ों आदिवासियों के अस्तित्व का सवाल है, लेकिन कांग्रेस सरकार ने ईसाई मिशनरियों के प्रभाव में आकर इस विधेयक को लागू नहीं किया.
कांग्रेस पर लगाए गंभीर आरोप
चंपई सोरेन ने कांग्रेस पर आदिवासी विरोधी होने का आरोप लगाते हुए कहा कि 1961 में कांग्रेस सरकार ने ‘आदिवासी धर्म कोड’ को जनगणना से हटवा दिया था. इसके अलावा, झारखंड आंदोलन के दौरान कांग्रेस सरकार ने कई बार आदिवासियों पर गोली चलवाई थी. उन्होंने कहा, “आदिवासी संस्कृति केवल पूजा-पद्धति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक संपूर्ण जीवनशैली है. हमारे समाज में जन्म से लेकर विवाह और मृत्यु तक की सभी प्रक्रियाएं हमारे पारंपरिक नेता – मांझी परगना, पाहन, मानकी मुंडा, पड़हा राजा आदि द्वारा संपन्न की जाती हैं. लेकिन धर्मांतरण के बाद लोग चर्च में जाते हैं और हमारी परंपराओं को छोड़ देते हैं. क्या वहां मरांग बुरु या सिंग बोंगा की पूजा होती है?”
सरना धर्म और आरक्षण पर बोले चंपई
चंपई सोरेन ने कहा कि धर्मांतरण करने के बावजूद कुछ लोग आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं, जिससे सरना आदिवासी समाज के बच्चे पिछड़ रहे हैं. उन्होंने कहा, “अगर इस धर्मांतरण को नहीं रोका गया तो आने वाले समय में हमारे सरना स्थलों, जाहेर स्थलों और देशाउली में पूजा करने वाला कोई नहीं बचेगा. हमारी संस्कृति और पहचान खत्म हो जाएगी.“ उन्होंने कहा कि धर्मांतरण के खिलाफ यह लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर है और इसके लिए एक बड़े आंदोलन की जरूरत है. चंपई सोरेन ने सभी आदिवासियों से अपील की कि वे अपने धर्म और परंपराओं को बचाने के लिए इस आंदोलन में शामिल हों.