पाकुड़ में आयोजित मांझी परगना महासम्मेलन में भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने हेमंत सोरेन की सरकार पर तीखा हमला बोला, विशेष रूप से बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर. उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने अपने खून-पसीने से अंग्रेजों को भगाकर आदिवासी जमीन को मुक्त कराया, और अब हमें उसी साहस के साथ बांग्लादेशी घुसपैठियों को भगाकर अपनी जमीन वापस लेनी होगी. चंपई सोरेन ने आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा की बात करते हुए कहा कि किसी भी हालत में आदिवासी बहन-बेटियों के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. उन्होंने जोर देकर कहा कि आदिवासी समाज की धार्मिक आस्थाओं, जैसे जाहेर थान और मांझी थान, को बचाने के लिए अगर एक और लड़ाई लड़नी पड़ी, तो वे पीछे नहीं हटेंगे. सोरेन ने सभा के दौरान बांग्लादेशी घुसपैठ को आदिवासी समाज की जमीन और संस्कृति के लिए बड़ा खतरा बताया. उन्होंने कहा कि यह घुसपैठ आदिवासी समाज को कमजोर कर रही है, और इसके परिणामस्वरूप कई गांवों से आदिवासी पूरी तरह गायब हो चुके हैं.
अंग्रेजो की तरह बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकल फेकेंगे: चम्पाई सोरेन
चंपई सोरेन ने अपने भाषण में जोर देकर कहा कि संताल परगना क्षेत्र में आदिवासियों की जमीन पर अवैध कब्जा किया जा रहा है. उन्होंने दावा किया कि बांग्लादेशी घुसपैठियों की वजह से कई ऐसे गांव हैं, जहां अब कोई आदिवासी नहीं बचा है. सोरेन ने कहा कि वे इस महासम्मेलन के माध्यम से आदिवासी समाज को जागरूक करने आए हैं, ताकि उन्हें यह समझाया जा सके कि उनके अस्तित्व और सांस्कृतिक धरोहर पर हमला हो रहा है. सोरेन ने इस बात पर भी जोर दिया कि आदिवासियों की जमीनें अवैध तरीके से बेची जा रही हैं, जबकि कानूनन आदिवासी जमीनों की बिक्री संभव नहीं है. एसपीटी एक्ट के तहत आदिवासी जमीन को न तो खरीदा जा सकता है और न बेचा जा सकता है. उन्होंने कहा कि संताल परगना की भूमि को वापस लेने के लिए एक मजबूत आंदोलन की आवश्यकता है. उन्होंने अपने संबोधन में सीतापहाड़ी, पत्थर घट्टा और नसीपुर जैसे गांवों का उल्लेख किया, जो कभी आदिवासी बहुल हुआ करते थे, लेकिन आज इनमें एक भी आदिवासी नहीं बचा है. चंपई सोरेन ने जोर देकर कहा कि वे हर हाल में इन जमीनों को वापस लाने के लिए संघर्ष करेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासी समाज को अपनी परंपरागत कानून व्यवस्था के तहत अपनी जमीन और संस्कृति की रक्षा करनी होगी. सभा में उन्होंने यह भी कहा कि गांव-गांव जाकर आदिवासियों को जागरूक करेंगे और उन्हें अपने हक की लड़ाई के लिए तैयार करेंगे.