झारखंड की सत्ताधारी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है. पार्टी अब झारखंड से बाहर भी अपने जनाधार को बढ़ाने के उद्देश्य से आगे बढ़ रही है और इस क्रम में बिहार उसके मिशन का अगला पड़ाव बन गया है. झामुमो ने साफ किया है कि वह बिहार की उन 12 विधानसभा सीटों पर दावेदारी करेगा, जहां उसे अपने जनाधार और संगठनात्मक मजबूती पर भरोसा है. पार्टी के शीर्ष नेताओं का मानना है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की छवि और लोकप्रियता को इन क्षेत्रों में भुनाया जा सकता है. खासतौर पर सीमावर्ती इलाकों में, जहां झारखंडी संस्कृति, आदिवासी अस्मिता और भाषा का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जाता है, वहां झामुमो को अपना आधार मजबूत नजर आता है.
गठबंधन की ओर झामुमो का झुकाव
झामुमो की योजना है कि वह बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेतृत्व वाले महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़े. इसके लिए पार्टी नेतृत्व गठबंधन में शामिल अन्य दलों से बातचीत की तैयारी कर रहा है. पार्टी को उम्मीद है कि सीटों के बंटवारे को लेकर सहमति बन जाएगी. हालांकि, अगर समझौता नहीं हो पाता है तो झामुमो ने संकेत दिया है कि वह अपने दम पर भी चुनाव लड़ने को तैयार है. झामुमो के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, पार्टी का संघर्ष और विचारधारा वाम दलों से मेल खाता है. इसलिए महागठबंधन के तहत वामपंथी दलों जैसे भाकपा माले से भी तालमेल की कोशिश की जाएगी. झामुमो नेताओं का मानना है कि यदि सभी समान सोच वाले दल एक साथ आते हैं तो इसका चुनावी लाभ सभी को मिलेगा.
संगठनात्मक तैयारियां जोरों पर
बिहार में झामुमो की गतिविधियां अब तेज हो गई हैं. पार्टी संगठन को मजबूत किया जा रहा है और स्थानीय स्तर पर सक्रिय कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी सौंपी जा रही है. शीर्ष नेतृत्व इन कार्यकर्ताओं के साथ लगातार बैठकें कर रहा है ताकि ज़मीनी स्तर पर मजबूत तैयारी की जा सके. हाल ही में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में पार्टी के बड़े नेताओं की एक बैठक हुई जिसमें बिहार चुनाव को लेकर विस्तार से चर्चा की गई. इस बैठक में तय किया गया कि किन-किन इलाकों में पार्टी की पकड़ है और वहां किस प्रकार से चुनाव प्रचार किया जाएगा.
सीमावर्ती क्षेत्रों में मजबूत पकड़
बिहार के सीमावर्ती जिलों जैसे किशनगंज, अररिया, कटिहार, जमुई, बांका और अन्य इलाकों में झामुमो की सक्रियता बढ़ी है. इन क्षेत्रों में झारखंडी संस्कृति और आदिवासी समुदायों की संख्या अधिक है, जो खुद को झामुमो के विचारों से जुड़ा मानते हैं. पार्टी की योजना है कि इन भावनात्मक और सांस्कृतिक जुड़ावों को राजनीतिक ताकत में बदला जाए. इन इलाकों में हेमंत सोरेन की लोकप्रियता भी एक अहम फैक्टर है. पार्टी सूत्रों के अनुसार, चुनाव प्रचार के दौरान हेमंत सोरेन की जनसभाएं उन्हीं क्षेत्रों में आयोजित की जाएंगी जहां झारखंड सरकार की योजनाओं और नीतियों का प्रभाव देखा गया है. इसके ज़रिए मतदाताओं को यह संदेश देने की कोशिश होगी कि अगर झामुमो को बिहार में मौका मिलता है तो वहां भी झारखंड जैसी योजनाएं लागू होंगी.
जनाधार बढ़ाने की रणनीति
झामुमो की यह सक्रियता इस बात का संकेत है कि पार्टी अब सिर्फ झारखंड तक सीमित नहीं रहना चाहती, बल्कि अन्य राज्यों में भी अपने राजनीतिक दायरे को बढ़ाना चाहती है. बिहार इसके लिए पहला बड़ा कदम है. अगर पार्टी यहां 12 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने में सफल होती है और चुनाव परिणाम अनुकूल आते हैं, तो यह झामुमो के लिए एक नई शुरुआत साबित हो सकती है. बिहार चुनाव को लेकर झामुमो की तैयारियों से इतना तो तय है कि आने वाले समय में बिहार की राजनीति में नई तरह की हलचल देखने को मिलेगी. अब सबकी नजर इस बात पर टिकी है कि क्या झामुमो और राजद के बीच सीटों को लेकर सहमति बनती है या नहीं? और अगर नहीं बनी, तो झामुमो किस रणनीति के साथ अकेले मैदान में उतरता है.