झारखंड और पश्चिम बंगाल की सीमा पर स्थित दुमका जिले के ऐतिहासिक मलूटी गांव में सैकड़ों साल पुराने मंदिरों का सौंदर्य जल्द ही अपने पुराने स्वरूप में लौटेगा। 17वीं से 19वीं शताब्दी के बीच निर्मित इन 108 मंदिरों में से 72 मंदिर आज भी अस्तित्व में हैं, जिनमें से 62 मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षण के लिए चयनित किए गए थे।
50 मंदिरों का काम पूरा, शेष मई 2025 तक तैयार
इन 62 मंदिरों में से 50 मंदिरों के संरक्षण कार्य पूरे हो चुके हैं, और शेष 12 मंदिरों का कार्य मई 2025 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके बाद, इन सभी मंदिरों का सौंदर्य उनके पुराने गौरवशाली स्वरूप में नजर आएगा।
टेराकोटा शैली और ऐतिहासिक महत्व
मलूटी के मंदिर टेराकोटा कला के अनूठे उदाहरण हैं। इनमें रामायण और महाभारतकाल के दृश्यों को बेहद खूबसूरती से उकेरा गया है। ये मंदिर न केवल झारखंड के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर हैं, बल्कि भारत की समृद्ध शिल्पकला का भी अद्भुत उदाहरण पेश करते हैं।
यूनेस्को सूची में शामिल करने की कोशिश
मलूटी के मंदिरों को यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची में शामिल कराने का भी प्रयास जारी है। इस दिशा में कार्यरत आईटीआरएचडी (इंडियन ट्रस्ट फॉर रूरल हेरिटेज एंड डेवलपमेंट) के बिहार-झारखंड प्रमुख एसडी सिंह ने बताया कि मंदिरों का संरक्षण कार्य तेजी से चल रहा है और निर्धारित समयसीमा के भीतर इसे पूरा कर लिया जाएगा।
पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा
मलूटी के मंदिरों का पुनर्निर्माण और संरक्षण न केवल उनके ऐतिहासिक महत्व को पुनर्स्थापित करेगा, बल्कि इससे इस क्षेत्र में पर्यटन को भी बड़ा बढ़ावा मिलेगा। संरक्षित मंदिरों की खूबसूरती और ऐतिहासिक महत्व पर्यटकों को आकर्षित करेंगे और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करेंगे। मलूटी गांव का यह प्रयास इसकी सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने और अगली पीढ़ी तक पहुंचाने की एक महत्वपूर्ण पहल है। इस ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने से भारत की गौरवशाली परंपरा को न केवल जीवित रखा जा सकेगा, बल्कि इसे वैश्विक मंच पर भी पहचान मिलेगी।