अर्जुन मुंडा या मीरा मुंडा, बीजेपी किस पर लगाएगी दांव? JMM के दशरथ गगराई बचा पाएंगे गढ़?….

झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 की तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो चुकी हैं. खरसावां विधानसभा सीट पर इस बार चुनावी माहौल काफी गर्म हो गया है. इस सीट पर बीजेपी और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के बीच कड़ी टक्कर की उम्मीद की जा रही है. खरसावां क्षेत्र में हाल के वर्षों में कई राजनीतिक बदलाव देखे गए हैं, जिनका असर आगामी चुनावों पर पड़ना तय है. विशेष रूप से, बीजेपी के सामने इस बार सबसे बड़ा सवाल यह है कि पार्टी अर्जुन मुंडा या उनकी पत्नी मीरा मुंडा में से किसे चुनावी मैदान में उतारेगी. दूसरी ओर, JMM के दशरथ गगराई लगातार तीसरी जीत की उम्मीद में हैं और अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं.

अर्जुन मुंडा के चुनावी भविष्य पर संदेह

अर्जुन मुंडा, जो झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं और खरसावां विधानसभा सीट से चार बार जीत भी हासिल कर चुके हैं, उनके चुनाव लड़ने को लेकर इस बार संदेह बना हुआ है. 2024 के लोकसभा चुनाव में खूंटी संसदीय क्षेत्र से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. इस हार के बाद राजनीतिक हलकों में यह चर्चा शुरू हो गई है कि अर्जुन मुंडा इस बार विधानसभा चुनाव में भी उतर सकते हैं. हालाँकि, 2014 के विधानसभा चुनाव में भी अर्जुन मुंडा को झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के उम्मीदवार दशरथ गगराई से हार का सामना करना पड़ा था, जिससे उनकी स्थिति थोड़ी कमजोर मानी जा रही है. ऐसे में, सवाल यह है कि क्या अर्जुन मुंडा इस बार फिर से खरसावां से चुनाव लड़ने का फैसला करेंगे या किसी सुरक्षित सीट की तलाश करेंगे. अर्जुन मुंडा ने अब तक इस पर कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया है, लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि वे इस बार विधानसभा चुनाव में अपनी जगह नहीं बनाना चाहेंगे. उनके पास एक विकल्प यह भी है कि वे अपनी पत्नी मीरा मुंडा को खरसावां से चुनाव लड़ने के लिए आगे कर सकते हैं.

मीरा मुंडा की संभावित उम्मीदवारी

अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा के नाम की चर्चा भी इस बार खरसावां विधानसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार के रूप में की जा रही है. मीरा मुंडा लंबे समय से अपने पति अर्जुन मुंडा के साथ सामाजिक कार्यों में सक्रिय रही हैं और क्षेत्र के लोगों के बीच उनका एक अच्छा प्रभाव भी है. हालांकि, अब तक उनके चुनाव लड़ने को लेकर कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन पार्टी के भीतर इस बात की चर्चा जोरों पर है कि इस बार मीरा मुंडा खरसावां से बीजेपी का चेहरा हो सकती हैं. मीरा मुंडा के राजनीतिक अनुभव की कमी को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि यदि उन्हें उम्मीदवार बनाया जाता है, तो उन्हें एक मजबूत प्रचार अभियान की आवश्यकता होगी. अर्जुन मुंडा ने इस संदर्भ में यह भी कहा है कि वे पार्टी के फैसले का सम्मान करेंगे और पार्टी उन्हें जो भी जिम्मेदारी देगी, उसे निभाएंगे. ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मीरा मुंडा को चुनावी मैदान में उतारने का फैसला होता है या अर्जुन मुंडा खुद ही एक बार फिर से खरसावां से चुनाव लड़ेंगे.

लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को झटका

खरसावां विधानसभा सीट, जो खूंटी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है, 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका साबित हुई. अर्जुन मुंडा, जो इस क्षेत्र से चार बार विधायक रह चुके हैं, को लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण मुंडा से हार का सामना करना पड़ा. कालीचरण मुंडा ने 89,910 वोट हासिल किए, जबकि अर्जुन मुंडा को 74,960 वोट मिले. इस हार ने बीजेपी के लिए खरसावां क्षेत्र में चुनावी समीकरणों को और कठिन बना दिया है. यह परिणाम बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका था क्योंकि खरसावां विधानसभा सीट पर बीजेपी का एक लंबा राजनीतिक इतिहास रहा है. हालांकि, लोकसभा चुनाव में मिली हार ने पार्टी को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि इस बार विधानसभा चुनाव में कौन-सी रणनीति अपनाई जाए.

दशरथ गगराई का दबदबा

झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के दशरथ गगराई खरसावां विधानसभा सीट से लगातार दो बार जीत दर्ज कर चुके हैं और इस बार वे अपनी हैट्रिक पूरी करने के लिए मैदान में हैं. 2014 में दशरथ गगराई ने अर्जुन मुंडा को पराजित कर सभी को चौंका दिया था. उसके बाद 2019 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी के जवाहर वानरा को भी बड़े अंतर से हराया था. दशरथ गगराई की लोकप्रियता खरसावां क्षेत्र में लगातार बढ़ रही है और वे इस बार भी मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं. गगराई का राजनीतिक सफर खरसावां में उनकी पकड़ को दर्शाता है. जहां 2014 में उन्होंने अर्जुन मुंडा जैसी बड़ी हस्ती को हराया था, वहीं 2019 में भी उन्होंने अपनी जीत को दोहराया. उनके पास मजबूत जनाधार है, विशेष रूप से आदिवासी समुदाय में, जो खरसावां क्षेत्र की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा है.

चंपाई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने से समीकरण बदले

सरायकेला सीट के विधायक और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के भाजपा में शामिल होने से कोल्हान क्षेत्र की राजनीति में बड़ा बदलाव आया है. चंपाई सोरेन का भाजपा में आना एक बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम था, जिसने क्षेत्रीय राजनीति के समीकरणों को पूरी तरह से बदल दिया है. चंपाई सोरेन के भाजपा में शामिल होने से गणेश महली जैसे पुराने भाजपा नेताओं के लिए टिकट की उम्मीद कम हो गई है. गणेश महली, जो पहले सरायकेला से भाजपा के टिकट पर दो बार चुनाव लड़ चुके हैं, अब खरसावां से चुनाव लड़ने की दावेदारी पेश कर रहे हैं. गणेश महली ने पार्टी नेतृत्व के समक्ष खरसावां से चुनाव लड़ने के लिए आवेदन भी दिया है.

मंगल सिंह सोय की मजबूत दावेदारी

खरसावां के पूर्व विधायक और बीजेपी के समर्पित नेता मंगल सिंह सोय ने भी इस बार खरसावां से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की है. 2009 के विधानसभा चुनाव में मंगल सिंह सोय ने खरसावां से बड़ी जीत हासिल की थी. इसके बाद, अर्जुन मुंडा जब मुख्यमंत्री बने थे, तब उन्होंने खरसावां सीट को छोड़ दिया था, और मंगल सिंह सोय ने उन्हें यह सीट दी थी. मंगल सिंह सोय ने 2009 में 27,000 से अधिक वोटों से खरसावां में जीत दर्ज की थी, और वे इस बार भी अपने पुराने जनाधार पर भरोसा कर रहे हैं. उन्होंने पार्टी जिलाध्यक्ष को आवेदन देकर चुनाव लड़ने की अपनी मंशा जाहिर की है.

खरसावां में तिहरी शक्ति का प्रभाव

खरसावां विधानसभा क्षेत्र में तिहरी शक्ति यानी महतो, मुंडा और मुस्लिम मतदाताओं का महत्वपूर्ण प्रभाव है. कुड़मी-महतो की आबादी यहां 15 प्रतिशत है, जबकि मुंडा समुदाय की 8 प्रतिशत और मुस्लिम समुदाय की 7 प्रतिशत आबादी है. इसके अलावा, अन्य आदिवासी समूहों की जनसंख्या भी 25 प्रतिशत है. इस क्षेत्रीय जातीय समीकरण को देखते हुए, हर पार्टी को अपने उम्मीदवार का चयन बहुत सोच-समझकर करना होगा.

बीजेपी का खरसावां में पुराना दबदबा

खरसावां विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास बीजेपी के पक्ष में रहा है. 1967 में इस सीट का गठन हुआ और तब से लेकर अब तक बीजेपी को इस सीट पर पांच बार जीत मिली है. इसके अलावा, एक-एक बार जनसंघ, जनता पार्टी, कांग्रेस और JMM को भी जीत मिली है. हालांकि, हाल के वर्षों में JMM का प्रभाव क्षेत्र में बढ़ता गया है और दशरथ गगराई ने 2014 और 2019 में इस सीट पर लगातार जीत दर्ज की है. ऐसे में, बीजेपी को इस बार अपना पुराना दबदबा वापस पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी.

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