एकीकृत बिहार के एससी, एसटी और ओबीसी कैटेगरी के लोगों को झारखंड में आरक्षण का लाभ देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर स्पेशल लीव पिटीशन (एसएलपी) पर सुनवाई की गयी। इस दाैरान प्रार्थी, राज्य सरकार और केंद्र सरकार की ओर से पक्ष रखा गया। सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया। सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस उदय यू ललित व जस्टिस अजय रस्तोगी की खंडपीठ में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हुई।
इस दौरान प्रार्थी की ओर से झारखंड हाइकोर्ट के अधिवक्ता सुमित गाड़ोदिया ने पक्ष रखा। उन्होंने खंडपीठ को बताया कि वह एकीकृत बिहार के समय से रह रहे हैं। 15 नवंबर 2000 को बिहार के बंटवारे के बाद झारखंड का गठन किया गया। उसके बाद भी वह रांची, झारखंड में ही रह रहे हैं। नाैकरी भी यहीं कर रहे हैं। एकीकृत बिहार में जो सुविधाएं मिल रही थीं, वही सुविधाएं उन्हें झारखंड में भी मिलेंगी। लॉर्जर बेंच का फैसला सही नहीं है। उसे निरस्त करना चाहिए। झारखंड सरकार के अपर महाधिवक्ता अरुणाभ चौधरी ने बताया कि राज्य सरकार, झारखंड हाइकोर्ट के बहुमत के फैसले का समर्थन कर रहा है। झारखंड राज्य के जो निवासी हैं, उन्हें ही आरक्षण का लाभ मिलेगा। खंडपीठ ने सभी का पक्ष सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
कैसे उठा मामला..
सिपाही पद से हटाये गये प्रार्थियों व राज्य सरकार की ओर से दायर अलग-अलग अपील याचिकाओं पर जस्टिस एचसी मिश्र व जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति की खंडपीठ में सुनवाई के दाैरान दो अन्य खंडपीठों के अलग-अलग फैसले की बात सामने आयी थी। इसके बाद जस्टिस मिश्र की अध्यक्षतावाली खंडपीठ ने नाै अगस्त 2018 को मामले को लार्जर बेंच में ट्रांसफर कर दिया।
वर्ष 2006 में कविता कुमारी कांधव व अन्य बनाम झारखंड सरकार के मामले में जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की अध्यक्षतावाली खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि दूसरे राज्य के निवासियों को झारखंड में आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। वहीं वर्ष 2011 में तत्कालीन चीफ जस्टिस भगवती प्रसाद की अध्यक्षतावाली खंडपीठ ने मधु बनाम झारखंड सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया कि दूसरे राज्य के निवासियों को झारखंड में आरक्षण का लाभ मिलेगा। मामले को लॉर्जर बेंच में भेजा गया।
हाइकोर्ट की लॉर्जर बेंच ने सुनाया था फैसला..
झारखंड हाइकोर्ट में राज्य सरकार ने अपील दायर की थी. कहा था कि बिहार के स्थायी निवासी को झारखंड में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता है। तीन न्यायाधीशों की लार्जर बेंच ने 2:1 के बहुमत से 24 फरवरी 2020 को फैसला सुनाया। लार्जर बेंच में जस्टिस एचसी मिश्र, जस्टिस अपरेश कुमार सिंह व जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति शामिल थे। हालांकि लार्जर बेंच में शामिल जस्टिस एचसी मिश्र ने जस्टिस अपरेश कुमार सिंह व जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति के उलट विचार दिया था।
जस्टिस मिश्र ने राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया। कहा कि प्रार्थी एकीकृत बिहार के समय से झारखंड में ही रह रहे हैं। वे आरक्षण के हकदार हैं। इन्हें तुरंत सेवा में लिया जाये। जितने दिन आउट ऑफ़ सर्विस में रहे हैं, उसका वेतन का भुगतान नहीं किया जायेगा। हालांकि जस्टिस मिश्र के फैसले के ऊपर बहुमत से दिया गया (2:1) फैसला ही मान्य है, जिसमें कहा गया कि बिहार या दूसरे राज्यों में रहनेवाले आदिवासियों, पिछड़ों व अनुसूचित जाति के लोगों को झारखंड में आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।