कैबिनेट से पास हो चुके झारखंड लैंड म्यूटेशन बिल को लेकर राज्य सरकार अब भी ऊहापोह की स्थिति में है| यहीं वजह है कि लैंड म्यूटेशन बिल मानसून सत्र में पेश नहीं किया गया। सत्र के पहले दिन ही ये बिल पेश होना था|सहयोगी दल कांग्रेस द्वारा किए गए विरोध के बाद सरकार इस बिल में संशोधन करने कामन बना रही है| माना जा रहा है कि पूर्व में तैयार राजस्व पदाधिकारी संरक्षण अधिनियम के हिस्से को इससे अलग किया जाएगा। कांग्रेस विधायकों के विरोध को देखते हुए सरकार ने इसे संवेदनशीलता से लिया है तथा अब मुख्यमंत्री अपनी कोर टीम से चर्चा करने के बाद ही इसे सदन में लाएंगे।
वहीं, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि राज्य सरकार कोई भी चीज लाएगी तो पूरी तरह से सोच-विचार कर के ही लाएगी|सही गलत का पूरी तरह से आकलन करके ही चीजें सामने रखी जाएगी|
इससे पहले कांग्रेस विधायकों के विरोध को देखते हुए गुरुवार देर रात आलमगीर आलम और डॉ. रामेश्वर उरांव मुख्यमंत्री से मिलने पहुंचे|मुलाकात के दौरान कांग्रेस विधायक दल में इस मुद्दे पर विरोध को लेकर चर्चा हुई। सूत्रों के मुताबिक झारखंड प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी आरपीएन सिंह भी इस बिल के पेश किए जाने के पक्ष में नहीं थे। कई विधायकों ने उनसे बात कर विरोध जताया है।
राज्य के सत्ता में पार्टनर कांग्रेस झारखंड म्यूटेशन बिल पर सरकार के साथ नहीं दिख रही है। गुरुवार को हुई कांग्रेस विधायक दल की बैठक में कहा गया किये बिल लोकहित हित में नहीं है। विधायकों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए प्रदेश कांग्रेस ने म्यूटेशन बिल पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से चर्चा करने का आश्वासन दिया|इसी के बाद आलमगीर आलम ने देर रात मुख्यमंत्री से मुलाकात भी की।सबसे पहले विधायक बंधु तिर्की ने लैंड म्यूटेशन बिल का विरोध किया था जिसके बाद अन्य विधायक समर्थन में आ खड़े हुए।
यहां तक कि कांग्रेस विधायक बंधु तिर्की के आह्वान पर विभिन्न संगठनों नें 15 सितंबर को रांची में अलग-अलग स्थानों पर विरोध प्रदर्शन किया था। तिर्की ने इस बिल को खतरनाक बताते हुए कहा था कि इससे काला अध्याय शुरू होगा। इस प्रकार बंधु तिर्की ने सत्ता में रहकर भी इस मोर्चे पर बाजी मार ली है। सदन में बिल पेश नहीं होने के बाद शुक्रवार को उन्होंने मुख्यमंत्री को बधाई भी दी| जिससे ये साफ होता है कि इस सत्र में बिल लाने का इरादा टल चुका है।