झारखंड हाइकोर्ट ने राज्य के स्वास्थ्य सचिव और रिम्स की प्रभारी निदेशक को समन जारी किया है| न्यायालय ने कोरोना वायरस के संक्रमण से निपटने के लिए बनी योजनाओं की जानकारी देने के लिए दोनों को तलब किया है| इसके साथ ही 1 अक्टूबर, 2020 को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये कोर्ट में हाजिर होने का आदेश दिया है|
झारखंड हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन एवं जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ शुक्रवार को कोविड-19 से निपटने की योजनाओं की लचर व्यवस्था पर दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई की| जिसके बाद उक्त निर्देश दिया| गौरतलब है कि इस मामले में हाइकोर्ट ने स्वत: संज्ञान भी लिया था, जिसके साथ इन याचिकाओं को भी टैग कर दिया गया है|
दरअसल, हाइकोर्ट में दाखिल जनहित याचिकाओं में बेकाबू हुए कोरोना वायरस के संक्रमण के लिए रिम्स की लचर व्यवस्था और उसके कुप्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया गया है| शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए हाइकोर्ट ने राज्य सरकार व रिम्स से पूछा कि रिम्स में चिकित्सा पदाधिकारियों, नर्सिंग और पारा मेडिकल स्टाफ्स के कितने पद रिक्त हैं?
कोर्ट के समक्ष अपनी बात रखते हुए जब सरकार ने रिक्त पदों को भरने की बात कही है, तो खंडपीठ ने कड़ा रूख अपनाते हुए सवाल किया कि रिक्तियों को भरने की दिशा में कदम क्यों नहीं उठाये जा रहे हैं? अदालत ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान में काफी सुधार की जरूरत है| चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि वर्तमान स्थिति में राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था रिम्स के ऊपर ही निर्भर करती है| इसलिए कोर्ट का समूचा ध्यान रिम्स की व्यवस्था सुधारने पर केंद्रित है|
खंडपीठ ने राज्य सरकार से सवाल किया कि रिम्स पर केंद्र व राज्य सरकार के द्वारा लगभग एक अरब रुपये प्रति वर्ष खर्च किये जाने के बावजूद राज्य के सबसे बड़े अस्पताल में सिर्फ एक सीटी स्कैन मशीन क्यों है? ये पूछा गया कि किस कारण से कोरोना जांच करा रहे हैं व्यक्तियों को उनकी रिपोर्ट 10 दिन बाद मिल रही है?
माननीय उच्च न्यायालय ने इन सभी बिंदुओं पर राज्य सरकार से जवाब तलब किया है| दोसप्ताह बाद यानि कि 1 अक्टूबर को इस मामले में फिर से सुनवाई के लिए तारीख तय की है| अगली सुनवाई में झारखंड सरकार के स्वास्थ्य सचिव एवं रिम्स निदेशक (प्रभारी) को भी विस्तृत जवाब के साथ कोर्ट मेंहाजिर रहने को कहा गया है|