सोमवार को वित्त मंत्री ने केंद्रीय बजट में आदिवासी बहुल क्षेत्रों में 750 नए एकलव्य विद्यालय खोले जाने की घोषणा की है। वर्ष 2022 तक ये सभी विद्यालय खोले जाने का लक्ष्य रखा गया है। निश्चित रूप से इनमें झारखंड को भी बड़ी संख्या में स्कूल मिलेंगे। इन विद्यालय के खुलने से जनजातीय बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पास के विद्यालयों में ही उपलब्ध हो सकेगी। इसके लिए बजट में एकलव्य विद्यालयों की लागत अब बढ़ाकर 38 करोड़ रुपये कर दी गई है जो पहले 20 करोड़ थी। पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्रों में ये लागत प्रति विद्यालय 48 करोड़ रुपये कर दी गई है।
वर्ष 1998-99 से ही जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा देश में जनजातीय जनसंख्या के बच्चों के लिए उनके अपने परिवेश में गुणवत्तायुक्त शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालयों की स्थापना की जा रही है। जिन इलाकों में जनजातीय आबादी 50 फीसदी (कम से कम 20,000) से अधिक हैं, वहां वर्ष 2022 तक एक एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालयों की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है।
इन विद्यालयों में छात्रावास और स्टाफ क्वार्टर समेत खेल के मैदान, छात्रों के लिए कंप्यूटर लैब, शिक्षकों के लिए संसाधन कक्ष आदि का भी प्रावधान किया गया है। देश में 288 ऐसे विद्यालय पहले से संचालित हैं, जबकि 452 नए विद्यालय स्वीकृत हुए हैं। वहीं पहले से जो संचालित विद्यालय है उनमें लगभग 73 हजार बच्चे नामांकित हैं। इनमें से झारखंड में सात एकलव्य विद्यालय पहले से संचालित हैं। पिछले साल यहां खुले 13 नए एकलव्य विद्यालयों में नामांकन के लिए प्रवेश परीक्षा ले ली गई थी, लेकिन कोरोना के कारण विद्यालय में कक्षाएं शुरू नहीं हो सकीं।
जहां ये विद्यालय खोले गए हैं, उनमें पाकुड़ के लिट्टीपाड़ा, चतरा के कान्हाचट्टी, दुमका के काठीकुंड, खूंटी के कर्रा, जामताड़ा के फतेहपुर, सिमडेगा के गरजा, पूर्वी सिंहभूम के बहरागोड़ा, लातेहार के नेगाई, गिरिडीह के पीरटांड़, पलामू के मनातू, सरायकेला-खरसावां के नीमडीह, पश्चिमी सिंहभूम के कुमारडुंगी और गुदरी शामिल हैं। इन स्कूलों में 6ठी, 7वीं और 8वीं कक्षा में नामांकन होना था। अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक व पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग अब नए सत्र से इन स्कूलों को खोलने की तैयारी कर रहा है।
खादी के पोशाक पहनेंगे एकलव्य विद्यालयों के बच्चे , निफ्ट ने तैयार की है डिजाइन
झारखंड समेत देश भर के एकलव्य विद्यालयों के बच्चे खादी से बने पोशाक पहनेंगे। जनजातीय मामलों के मंत्रालय और एमएसएमई मंत्रालय के बीच इसे लेकर एमओयू साइन हुआ है। वर्ष 2020-21 में जनजातीय कार्य मंत्रालय बच्चों की पोशाक के लिए 14.77 करोड़ रुपये मूल्य के 6 लाख मीटर से अधिक खादी का कपड़ा खरीदेगा। जैसे-जैसे हर साल एकलव्य विद्यालयों की संख्या में बढ़ोतरी होगी, उसी अनुपात में खादी के कपड़े की खरीदारी भी बढ़ेगी।दिल्ली के निफ्ट ने एकलव्य विद्यालय के बच्चों की पाेशाक डिजाइन की है।
अर्जुन मुंडा, केंद्रीय मंत्री, जनजातीय मामले ने बजट में 750 एकलव्य विद्यालयों की स्थापना तथा लागत खर्च बढ़ाने की स्वीकृति को एक अच्छा कदम बताया है। अर्जुन मुंडा ने कहा कि इससे आदिवासी बच्चों की शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन आएगा। ये बजट अबतक का सर्वश्रेष्ठ बजट है, जिसमें सभी क्षेत्रों के गुणात्मक विकास को ध्यान मेें रखा गया है। आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्याें की प्राप्ति के साथ-साथ गांवों तक सबको बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिले, इसके लिए बजट में प्रावधान किए गए हैं।