रांची: झारखंड सरकार द्वारा राज्यभर के पारा शिक्षकों की सेवाएं अचानक समाप्त किए जाने के फैसले के खिलाफ जोरदार विरोध शुरू हो गया है। इस निर्णय से हजारों पारा शिक्षक प्रभावित हुए हैं, जिनका भविष्य अब अंधकारमय होता दिख रहा है। शिक्षक संगठनों ने सरकार पर संवेदनहीनता का आरोप लगाते हुए कहा है कि 50 वर्ष की उम्र में वे कहां जायेंगे और अपने परिवारों का भरण-पोषण कैसे करेंगे।
पारा शिक्षकों का कहना है कि वे वर्षों से बेहद कम मानदेय पर काम कर रहे थे और शिक्षा व्यवस्था को अपने कंधों पर संभाले हुए थे। अब जब उन्होंने दो-दो बार प्रमाणपत्रों का सत्यापन करवा लिया, उसके बावजूद सरकार का यह रवैया चौंकाने वाला और दुर्भाग्यपूर्ण है।
कई शिक्षकों ने बताया कि उन्होंने बैंक से लोन भी ले रखा है, जिसे चुकाना अब संभव नहीं होगा। “हमने अपनी पूरी उम्र शिक्षा सेवा में लगा दी, अब इस उम्र में हम कहां जायेंगे?”—एक पारा शिक्षक ने सवाल उठाया।
सरकार का कहना है कि यह फैसला “फर्जी प्रमाणपत्रों” के मामलों के आधार पर लिया गया है, लेकिन शिक्षक संगठनों ने इसे सिरे से खारिज किया है। उनका कहना है कि यह फैसला सभी शिक्षकों को एक ही तराजू में तौलने जैसा है, जो न्यायसंगत नहीं है।
पारा शिक्षकों की प्रमुख मांगें:
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सभी पारा शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति की जाए।
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वेतनमान की बहाली की जाए और बकाया वेतन का शीघ्र भुगतान हो।
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शिक्षा विभाग में शिक्षकों की भारी कमी को देखते हुए कोई वैकल्पिक समाधान निकाला जाए।
पारा शिक्षक संघ ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगों को जल्द नहीं माना गया, तो वे बड़े स्तर पर आंदोलन छेड़ेंगे। फिलहाल पूरे राज्य में विरोध-प्रदर्शन जारी हैं।
शिक्षा विभाग की ओर से इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान अब तक नहीं आया है। हालांकि सूत्रों के अनुसार, सरकार इस फैसले पर पुनर्विचार कर सकती है, लेकिन अभी इस बारे में कुछ भी निश्चित नहीं कहा जा सकता।
झारखंड में शिक्षा व्यवस्था और पारा शिक्षकों के भविष्य को लेकर गंभीर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। अब निगाहें सरकार के अगले कदम पर टिकी हैं कि वह इस संवेदनशील मुद्दे को लेकर क्या रुख अपनाती है।