रांची में अलका लांबा का केंद्र पर तीखा हमला: “मोहन भागवत का रक्षा बैठकों में क्या काम?”

रांची: कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष अलका लांबा ने सोमवार को रांची में आयोजित “संविधान बचाओ रैली” के मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने सवाल उठाया कि जब देश की सुरक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण फैसलों पर चर्चा होती है, तब प्रधानमंत्री आवास में होने वाली बैठकों में सेना प्रमुखों के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत क्यों शामिल होते हैं?

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अलका लांबा ने केंद्र सरकार पर संवैधानिक संस्थाओं की अवहेलना का आरोप लगाते हुए कहा, “प्रधानमंत्री सर्वदलीय बैठकों में तो शामिल नहीं होते, लेकिन मोहन भागवत सुरक्षा मामलों की बैठकों में कैसे शामिल हो जाते हैं? यह लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरे का संकेत है।”

उन्होंने पहलगाम हमले का जिक्र करते हुए कहा कि 28 लोगों की जान जाने के बावजूद प्रधानमंत्री न तो घटनास्थल पर पहुंचे, न ही घायलों से मिलने गए। “सर्वदलीय बैठक में बस यह कह देना कि ‘हमसे चूक हो गई’ पर्याप्त नहीं है। देश जानना चाहता है कि प्रधानमंत्री इस चूक की जिम्मेदारी कब लेंगे?” — लांबा ने मंच से सवाल किया।

“भाजपा चुनावों में व्यस्त, जनता के दर्द से अनजान”

अलका लांबा ने कहा कि बिहार चुनाव के मद्देनज़र भाजपा सरकार पहलगाम हमले से ध्यान भटकाना चाहती है, लेकिन जनता सब समझ रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि “मोदी सरकार दिखावे की राजनीति करती है। महिला आरक्षण बिल पास होने के बावजूद आज तक लागू नहीं हुआ, और जातिगत जनगणना की मांग पर भी सरकार टालमटोल कर रही है।”

उन्होंने राहुल गांधी की पहल की सराहना करते हुए कहा, “यह आपकी जीत है, यह तानाशाही सरकार की हार है। राहुल गांधी ने जातिगत जनगणना को जनांदोलन बनाया और आज भाजपा को उसी मुद्दे पर झुकना पड़ा।”

“राहुल संवेदनशील, मोदी प्रचार में व्यस्त”

लांबा ने राहुल गांधी की संवेदनशीलता की मिसाल देते हुए कहा, “जब देश में आतंकी हमला होता है, तब राहुल गांधी शहीदों के घर जाते हैं, पीड़ितों से मिलते हैं। आज वे लेफ्टिनेंट नरवाल के परिवार से मिलने गए हैं। दूसरी ओर, प्रधानमंत्री मोदी चुनावी रैलियों में व्यस्त रहते हैं और जनता के दुःख-दर्द से दूरी बनाए रखते हैं।”

अंत में उन्होंने कहा, “देश पाकिस्तान के आतंकवादियों को जवाब देने में सक्षम है, पर राजनीतिक नेतृत्व की ज़िम्मेदारी निभाना भी ज़रूरी है। आज जरूरत दिखावे की नहीं, ईमानदार और संवेदनशील नेतृत्व की है।”

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