झारखंड में गोल्ड मेडल विजेता को सिपाही की नौकरी, बिहार में खिलाड़ियों को मिल रही DSP जैसी प्रतिष्ठित पोस्ट

 

रांची: एक ओर जहां खिलाड़ी देश का नाम रोशन कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ राज्य सरकारें उन्हें उनकी उपलब्धियों के अनुरूप सम्मान नहीं दे पा रही हैं। झारखंड राज्य इसका ताजा उदाहरण बनकर सामने आया है। यहां गोल्ड और सिल्वर मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों को भी सिर्फ सिपाही और ट्रैफिक पुलिस की नौकरी देकर संतुष्ट किया जा रहा है। दूसरी ओर, पड़ोसी राज्य बिहार में खिलाड़ियों को

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कॉमनवेल्थ गेम्स में लॉन बॉल खेल में स्वर्ण पदक जीतने वाली लवली चौबे, रजत पदक विजेता दिनेश कुमार और सरिता तिर्की जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी झारखंड में सिपाही की नौकरी कर रहे हैं। झारखंड के चंदन कुमार ने 2022 में राज्य के लिए कई मेडल्स जीते, लेकिन उन्हें अब तक राज्य सरकार की ओर से कोई नौकरी नहीं मिली। वे फिलहाल बिहार में प्रखंड पंचायती राज पदाधिकारी (ग्रेड पे 4200) के पद पर कार्यरत हैं।

25 वर्षों में केवल 50 खिलाड़ियों को ही मिली नौकरी
झारखंड के गठन के बाद से अब तक केवल 50 खिलाड़ियों को ही सरकारी नौकरी मिली है। वर्ष 2019 में 39 खिलाड़ियों को नौकरी दी गई, जबकि इससे पहले 2003-04 में पहली बार खिलाड़ियों को पुलिस विभाग में नियुक्ति मिली थी। इसका मतलब है कि पिछले 25 वर्षों में केवल दो बार ही खिलाड़ियों को सीधी नियुक्ति दी गई।

बिहार में बेहतर अवसर और सम्मान

वहीं, बिहार में वर्ष 2010 से खिलाड़ियों को नौकरी देने की पहल शुरू हुई और अब तक कुल 271 खिलाड़ियों को सरकारी नौकरियां मिल चुकी हैं। इनमें से कई खिलाड़ियों को DSP, सब-इंस्पेक्टर और जिला स्तर की प्रमुख जिम्मेदारियाँ दी गई हैं। यह साफ दिखाता है कि बिहार में खिलाड़ियों को न सिर्फ प्राथमिकता दी जा रही है, बल्कि उन्हें उनकी उपलब्धियों के अनुरूप सम्मानजनक दर्जा भी मिल रहा है।

झारखंड में 2 प्रतिशत आरक्षण, लेकिन लागू करने में उदासीनता

झारखंड सरकार द्वारा खिलाड़ियों के लिए सभी विभागों में 2 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण का प्रावधान है, लेकिन इस नियम का क्रियान्वयन बेहद सीमित स्तर पर हुआ है। वर्षों गुजरने के बावजूद अधिकांश खिलाड़ी इस नीति का लाभ नहीं ले पा रहे हैं।

निष्कर्ष

झारखंड के खिलाड़ियों की यह स्थिति राज्य सरकार की खेल नीतियों पर सवाल खड़े करती है। अगर राज्य सरकार समय रहते खिलाड़ियों की प्रतिभा और मेहनत को पहचान नहीं देगी, तो हो सकता है भविष्य में झारखंड से निकलने वाली प्रतिभाएं दूसरे राज्यों का रुख कर लें, जहां उन्हें उचित सम्मान और अवसर मिल सके।

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