केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने आखिरकार जातीय जनगणना (Caste Census) कराने का फैसला ले लिया है. केंद्रीय कैबिनेट द्वारा इस फैसले को मंजूरी दिए जाने के बाद देशभर में इसको लेकर प्रतिक्रियाएं आने लगी हैं. झारखंड में सत्तारूढ़ पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने इस फैसले का स्वागत किया है, हालांकि पार्टी ने इसे जनदबाव में लिया गया निर्णय बताया है. झामुमो नेताओं का कहना है कि यह विपक्षी दलों की नैतिक जीत है और केंद्र सरकार को यह कदम बहुत पहले ही उठा लेना चाहिए था.
सुप्रियो भट्टाचार्य ने बताया विपक्ष की जीत
झामुमो के केंद्रीय महासचिव और मुख्य प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव की प्रेस ब्रीफिंग के बाद मीडिया से बातचीत की. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार को यह फैसला बहुत पहले ले लेना चाहिए था, लेकिन उसने जनदबाव में आकर अब यह कदम उठाया है. यह विपक्षी दलों की मांग रही है और आखिरकार सरकार को इसे मानना ही पड़ा. उन्होंने कहा, “यह फैसला भले ही देर से हुआ है, लेकिन सही दिशा में उठाया गया कदम है, जिसका हम स्वागत करते हैं.”
सरना धर्म कोड पर झामुमो की दो टूक मांग
सुप्रियो भट्टाचार्य ने केंद्र सरकार से यह भी मांग की कि जातीय जनगणना के साथ-साथ आदिवासियों के लिए ‘सरना धर्म कोड’ को भी मान्यता दी जाए. उन्होंने कहा कि जिस तरह हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई समाजों में विभिन्न जातियां और पंथ होते हैं, उसी प्रकार आदिवासी समाज में भी कई जनजातियां और धार्मिक मान्यताएं हैं, जिन्हें अलग पहचान मिलनी चाहिए. उन्होंने बताया कि झारखंड विधानसभा ने पहले ही ‘सरना धर्म कोड’ के समर्थन में प्रस्ताव पारित करके केंद्र सरकार को भेजा है, लेकिन अब तक उस पर कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया है.
“संविधान के मूल को ध्यान में रखे केंद्र सरकार”
झामुमो नेता ने यह भी कहा कि संविधान के मूल में आरक्षण और सामाजिक न्याय की अवधारणा निहित है. लेकिन मोदी सरकार की कैबिनेट बैठक में आरक्षण के इन पहलुओं को लेकर कोई स्पष्टता नहीं दिखाई दी. उन्होंने केंद्र से आग्रह किया कि जब जातीय जनगणना की जाए, तो उसमें आदिवासी समाज के धार्मिक कोड को भी शामिल किया जाए ताकि उनकी सही पहचान और सामाजिक स्थिति सामने आ सके.
परिसीमन पर भी जताई चिंता
झामुमो ने जनगणना से पहले परिसीमन की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए हैं. सुप्रियो भट्टाचार्य ने स्पष्ट रूप से कहा कि जब तक जनगणना और जातीय जनगणना की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक देश में परिसीमन का काम रोका जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि जनगणना के बाद ही तय हो सकेगा कि किन क्षेत्रों को आरक्षण की श्रेणी में रखा जाए और किन्हें नहीं. इससे सामाजिक न्याय और समानता की बेहतर समझ बन सकेगी.
झारखंड में आरक्षण को लेकर सरकार सक्रिय
सुप्रियो भट्टाचार्य ने यह भी बताया कि झारखंड सरकार ने राज्य में आरक्षण की व्यवस्था को लेकर कई अहम फैसले लिए हैं. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने सरना धर्मावलंबियों को 28 प्रतिशत, दलितों को 18 प्रतिशत और पिछड़े वर्गों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव विधानसभा में पारित कर दिया है. यह झारखंड सरकार की सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है.
मोदी सरकार पर समय गंवाने का आरोप
झामुमो नेताओं ने केंद्र सरकार पर यह भी आरोप लगाया कि उसने पिछले 10 वर्षों में यह फैसला नहीं लिया और अब जब जनदबाव बहुत ज्यादा बढ़ गया, तब जाकर इसपर कार्रवाई की गई. सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि यदि यह निर्णय 10 साल पहले ही ले लिया गया होता, तो आज देश की सामाजिक संरचना और आंकड़े बहुत स्पष्ट होते और नीति निर्धारण अधिक सटीक होता.