झारखंड की सत्ता में काबिज झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) अब अपने राजनीतिक पंख फैलाने को तैयार है. हेमंत सोरेन की अगुवाई वाली यह पार्टी अब राज्य की सीमाओं से बाहर निकलकर पड़ोसी राज्यों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की तैयारी में जुट गई है. इस दिशा में झामुमो ने सबसे पहले बिहार और पश्चिम बंगाल की तरफ रुख किया है, जिससे राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय नेताओं लालू प्रसाद यादव और ममता बनर्जी की चिंता बढ़ सकती है. हाल ही में 14-15 अप्रैल को रांची के खेलगांव में आयोजित झामुमो के 13वें महाधिवेशन में पार्टी ने यह स्पष्ट संकेत दे दिया कि अब वह सिर्फ झारखंड तक सीमित नहीं रहना चाहती. महाधिवेशन में यह राजनीतिक प्रस्ताव पारित किया गया कि पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर अपने संगठन का विस्तार करेगी. इसके लिए सबसे पहले पड़ोसी राज्यों में संगठन को मजबूत करने की रणनीति बनाई गई है. खासकर बिहार और पश्चिम बंगाल के उन इलाकों पर फोकस किया जा रहा है, जो झारखंड की सीमाओं से सटे हुए हैं और जहां आदिवासी आबादी का खासा असर है.
बिहार की 12 सीटों पर लड़ने की तैयारी
झामुमो ने यह संकेत भी दिया है कि वह आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में कम से कम 12 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारना चाहती है. इन सीटों में जमुई, कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया, भागलपुर और बांका जैसे सीमावर्ती जिले शामिल हैं. झामुमो का मानना है कि इन जिलों में उसका संगठन काफी मजबूत है और पार्टी का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है. हालांकि पार्टी राजद के साथ गठबंधन करने को भी इच्छुक है. चूंकि राजद झारखंड में झामुमो सरकार में शामिल है, इसलिए बिहार में भी गठबंधन की संभावना बनी हुई है. लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर अभी कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया है. यदि झामुमो इन 12 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करता है, तो यह राजद के लिए असहज स्थिति पैदा कर सकता है. राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव बिहार की राजनीति में झामुमो के इस प्रवेश को हल्के में नहीं लेंगे. यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों दलों के बीच गठबंधन होता है या झामुमो स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ता है.
बंगाल में भी बढ़ेगा झामुमो का दखल
बिहार के साथ-साथ झामुमो की नजर पश्चिम बंगाल पर भी है. झारखंड से सटे बंगाल के झाड़ग्राम, पुरुलिया, बांकुड़ा, अलीपुरद्वार, पश्चिम वर्धमान और वीरभूम जैसे जिलों में झामुमो पहले भी चुनाव लड़ चुका है और वहां की आदिवासी आबादी में उसकी अच्छी पकड़ है. यही कारण है कि 2026 में होने वाले बंगाल विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी ने इन इलाकों में संगठन को सक्रिय करने का निर्णय लिया है. हालांकि 2021 के विधानसभा चुनाव में झामुमो ने अंतिम समय पर तृणमूल कांग्रेस (TMC) को समर्थन देने का फैसला लिया था, लेकिन अब जब पार्टी खुद को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करना चाहती है, तो ममता बनर्जी के लिए यह चिंता का विषय बन सकता है. झामुमो का आदिवासी समाज में गहरा प्रभाव है, जो TMC की परंपरागत वोटबैंक में सेंध लगा सकता है.
भाजपा शासित राज्यों पर भी नजर
झामुमो सिर्फ बिहार और बंगाल तक ही सीमित नहीं रहना चाहता, बल्कि उसने अब भाजपा शासित राज्यों की तरफ भी रुख कर लिया है. खासतौर पर ओडिशा और असम में संगठन के विस्तार की योजना बनाई गई है. ओडिशा के मयूरभंज, क्योंझर और सुंदरगढ़ जिलों में पार्टी का विस्तार किया जाएगा, जहां आदिवासी आबादी की संख्या अधिक है. वहीं, असम में पार्टी नेताओं के दौरे भी शुरू किए जाएंगे. असम में झारखंडी मूल के आदिवासियों को जनजातीय दर्जा दिलाने के लिए झामुमो एक विशेष अभियान भी चलाने जा रहा है. झामुमो का मानना है कि इन राज्यों में झारखंड से पलायन कर चुके आदिवासी बड़ी संख्या में रहते हैं और अगर उन्हें संगठित किया जाए, तो पार्टी का आधार मजबूत हो सकता है.
राजनीतिक समीकरणों में बड़ा बदलाव संभव
झामुमो की यह सक्रियता आने वाले समय में बिहार, बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों में राजनीतिक समीकरणों को बदल सकती है. आदिवासी क्षेत्रों में इसकी मजबूत पकड़ इसे एक प्रभावशाली क्षेत्रीय दल के रूप में स्थापित कर सकती है. वहीं, इससे राजद, तृणमूल कांग्रेस और यहां तक कि भाजपा के लिए भी चुनौती खड़ी हो सकती है.