IIT ISM धनबाद ने एक और बड़ी उपलब्धि हासिल की है. संस्थान के पेट्रोलियम इंजीनियरिंग विभाग के दो शोधकर्ताओं ने ऐसा ग्रीन डिमल्सीफायर विकसित किया है, जो कच्चे तेल की रिफाइनिंग को अधिक पर्यावरण-अनुकूल बनाएगा. इस तकनीक को भारत सरकार द्वारा पेटेंट प्रदान किया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह नवाचार तेल और गैस उद्योग के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. इस उपलब्धि को हासिल करने वाले पेट्रोलियम इंजीनियरिंग विभाग के शिक्षक डॉ. तरुण कुमार नैया और शोधकर्ता डॉ. योगेश धांधी को संस्थान ने बधाई दी है.
कैसे काम करता है नया डिमल्सीफायर?
कच्चे तेल में पानी और तेल का मिश्रण यानी इमल्शन बनने से तेल उत्पादन में बाधा उत्पन्न होती है. इसे अलग करने के लिए आमतौर पर डिमल्सीफायर नामक रसायनों का उपयोग किया जाता है. हालांकि, वर्तमान में प्रचलित डिमल्सीफायर पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकते हैं. तेल और गैस उद्योग में पर्यावरण-सुरक्षा से जुड़े कड़े नियम बनाए जा रहे हैं, जिससे पारंपरिक डिमल्सीफायर की जगह पर्यावरण-अनुकूल रसायनों की जरूरत बढ़ गई है. नये डिमल्सीफायर में पारंपरिक हानिकारक तत्वों को हटाकर पर्यावरण-अनुकूल तत्वों को शामिल किया गया है, जिससे यह तेल और पानी को अलग करने की प्रक्रिया को आसान बनाने के साथ-साथ कम प्रदूषणकारी भी बनाता है. शोधकर्ताओं ने इस डिमल्सीफायर का विभिन्न प्रकार के जटिल कच्चे तेलों पर परीक्षण किया और परिणाम उत्साहजनक रहे. इससे यह सिद्ध हुआ कि नया डिमल्सीफायर तेल उत्पादन प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बना सकता है और इसका पर्यावरण पर भी कम नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
पेटेंट प्रक्रिया और आधिकारिक मान्यता
इस नयी तकनीक को पेटेंट प्राप्त करने की प्रक्रिया 8 जून 2023 को शुरू हुई थी. शोधकर्ताओं ने इस तकनीक का आवेदन पेटेंट कार्यालय में दायर किया, जिसे विभिन्न वैज्ञानिक मूल्यांकन प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद 7 मार्च 2025 को स्वीकृति मिल गई. इस पेटेंट का आधिकारिक नाम “ग्रीन डिमल्सीफायर और उसकी तैयारी की प्रक्रिया” रखा गया है. पेट्रोलियम इंडस्ट्री में डिमल्सीफायर का उपयोग तेल और पानी को अलग करने के लिए किया जाता है. अधिकांश पारंपरिक डिमल्सीफायरों में रसायनों की उच्च मात्रा होती है, जो पर्यावरण और समुद्री जीवन के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं. IIT ISM धनबाद के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित यह नया डिमल्सीफायर पर्यावरण-अनुकूल है और समान प्रभावशीलता के साथ तेल उत्पादन में बेहतर परिणाम दे सकता है.
पेट्रोलियम इंजीनियरिंग विभाग का दूसरा पेटेंट
यह पेट्रोलियम इंजीनियरिंग विभाग के लिए हाल के वर्षों में प्राप्त दूसरा पेटेंट है. इससे पहले, 2018 में प्रो. टिंकू साइकिया, प्रो. बराशा डेका और प्रो. विकास माहतो की टीम ने सोया लेसिथिन क्वांटम डॉट्स को एंटी-एग्लोमरेन्ट्स के रूप में उपयोग करने और उनकी तैयारी की विधि को पेटेंट करवाया था. यह तकनीक हाइड्रेट बनने की समस्या को रोकने में मददगार साबित हुई थी. हाइड्रेट बनने की समस्या तेल और गैस पाइपलाइनों में अक्सर देखने को मिलती है. जब गैस और पानी उच्च दबाव और कम तापमान में मिलते हैं, तो वे ठोस क्रिस्टल बनाते हैं, जिससे पाइपलाइनें जाम हो सकती हैं. IIT ISM धनबाद की टीम द्वारा विकसित यह तकनीक तेल और गैस के सुरक्षित परिवहन में सहायक बनी.
संस्थान की वैज्ञानिक उपलब्धियों में बढ़ोतरी
IIT ISM धनबाद देश के प्रमुख तकनीकी और अनुसंधान संस्थानों में से एक है, जो पेट्रोलियम, खनन और ऊर्जा क्षेत्रों में उन्नत अनुसंधान के लिए जाना जाता है. यहां के वैज्ञानिक और शोधकर्ता तेल और गैस उद्योग की समस्याओं के नए समाधान विकसित करने में लगे रहते हैं. संस्थान की यह नवीनतम उपलब्धि इस बात का प्रमाण है कि यहां के शोधकर्ता औद्योगिक समस्याओं के व्यावहारिक समाधान देने में सक्षम हैं. यह उपलब्धि न सिर्फ IIT ISM धनबाद के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व की बात है. इससे भारत में ऊर्जा और पर्यावरण-अनुकूल तकनीकों के क्षेत्र में अनुसंधान को नई दिशा मिलेगी.
पर्यावरण संरक्षण में मददगार होगा नया डिमल्सीफायर
तेल और गैस उद्योग में लगातार पर्यावरणीय सुरक्षा मानकों को कड़ा किया जा रहा है, जिससे उद्योग जगत को नयी तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता है. IIT ISM धनबाद द्वारा विकसित ग्रीन डिमल्सीफायर पारंपरिक हानिकारक रसायनों के स्थान पर एक सुरक्षित और प्रभावी विकल्प प्रदान करता है. इससे तेल उत्पादन और परिष्करण की प्रक्रिया में प्रदूषण को कम करने में सहायता मिलेगी. यह नवाचार पेट्रोलियम क्षेत्र के साथ-साथ पर्यावरण-संरक्षण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है. आने वाले वर्षों में, इस तकनीक का व्यावसायिक उपयोग बड़े पैमाने पर तेल कंपनियों द्वारा किया जा सकता है, जिससे पर्यावरण को होने वाले नुकसान में कमी आएगी.