झारखंड के सरायकेला खरसावां जिले के खूंटपानी प्रखंड स्थित आराहासा मैदान में मागे मिलन महोत्सव का भव्य आयोजन किया गया. इस अवसर पर ग्रामीणों ने मांदर और नगाड़े की थाप पर जमकर नृत्य किया. स्थानीय विधायक दशरथ गागराई ने भी कार्यक्रम में भाग लिया और मागे गीत प्रस्तुत कर समां बांध दिया.
मागे महोत्सव का सांस्कृतिक महत्व
मागे पर्व आदिवासी समुदाय के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जो आपसी भाईचारे, सहयोग और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. यह पर्व प्रकृति के प्रति सम्मान और समुदाय की एकता को दर्शाता है. विधायक गागराई ने इस अवसर पर लोगों से अपनी संस्कृति और परंपरा को संरक्षित रखने की अपील की और इस तरह के आयोजनों को सामाजिक एकजुटता के लिए महत्वपूर्ण बताया.
विभिन्न नृत्य दलों की शानदार प्रस्तुतियां
महोत्सव में विभिन्न नृत्य दलों ने अपनी प्रस्तुतियां दीं। बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली टीमों को पुरस्कृत किया गया, जिनमें –
• सुसुन इनुंग आकड़ा उनचुड़ी की टीम को प्रथम पुरस्कार मिला.
• कोटसोना की मागे नृत्य दल को द्वितीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
• केयाडचालोम हाथी ग्रुप को तृतीय पुरस्कार प्राप्त हुआ.
• बालेए सागेन सुसुन दुरंग गति चुरगुईं की टीम को चतुर्थ स्थान मिला.
• हो दोस्तुर ग्रुप सिंबाडीह को पांचवां पुरस्कार प्रदान किया गया.
• सुनीता एंड गीता बोदरा मागे नृत्य दल ठकुरागुटू को छठा पुरस्कार दिया गया.
• विधायक दशरथ गागराई और बासंती गागराई ने विजेताओं को नकद राशि और सम्मानित किया.
ग्रामीणों में उत्साह और उमंग
इस महोत्सव में कलाकारों की प्रस्तुतियों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. मांदर और नगाड़ों की थाप पर ग्रामीणों ने पूरे जोश और उत्साह के साथ नृत्य किया. इस तरह के आयोजन केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं होते, बल्कि समाज में एकता, सहयोग और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखने का माध्यम भी बनते हैं.
झारखंड के अन्य हिस्सों में भी मनाया जाता है मागे महोत्सव
मागे महोत्सव का आयोजन झारखंड के अन्य स्थानों पर भी बड़े उत्साह के साथ किया जाता है. बिष्टुपुर स्थित गोपाल मैदान में राष्ट्रीय मागे महोत्सव का आयोजन किया गया, जिसमें देशभर के विभिन्न राज्यों से आए आदिवासी समुदाय के लोगों ने अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रदर्शन किया. रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधानों में सजे आदिवासी कलाकारों ने मांदर और नगाड़ों की धुन पर नृत्य प्रस्तुत किए. यह केवल एक सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि इसके माध्यम से प्रकृति प्रेम, आपसी एकता और संस्कृति की अखंडता का संदेश भी दिया गया.
सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने की जरूरत
मागे महोत्सव जैसे आयोजन आदिवासी समाज की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने में मदद करते हैं. आधुनिकता के इस दौर में जब पारंपरिक संस्कृतियां विलुप्त हो रही हैं, ऐसे उत्सव समाज को अपनी जड़ों से जोड़ने का काम करते हैं. इसके माध्यम से नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक धरोहर को समझने और अपनाने का अवसर मिलता है.