रांची: हर सप्ताह रिम्स में कंजेनिटल हार्ट डिफेक्ट (सीएचडी) से पीड़ित सात बच्चों का इलाज….

राजधानी के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में हर सप्ताह सात बच्चों का इलाज किया जा रहा है, जो कंजेनिटल हार्ट डिफेक्ट (सीएचडी) से पीड़ित होते हैं. यह जन्मजात हृदय दोष से संबंधित बीमारी है, जिसमें बच्चे के हृदय में छेद होने के कारण हृदय की संरचना और कार्य प्रभावित होती है. इस बीमारी के कारण बच्चे जल्दी थक जाते हैं और सामान्य गतिविधियाँ भी मुश्किल हो जाती हैं. हालांकि, रिम्स में इस बीमारी का इलाज संभव है और आयुष्मान योजना के तहत इन बच्चों का निशुल्क इलाज किया जाता है.

सीएचडी की गंभीरता और उपचार

रिम्स के सीटीवीएस विभाग के एचओडी डॉ. अंशुल कुमार के अनुसार, सीएचडी बीमारी मुख्य रूप से आनुवांशिक होती है. यदि माता-पिता को यह बीमारी रही है, तो बच्चों में इसके होने की संभावना अधिक रहती है. डॉ. कुमार बताते हैं कि सीएचडी से ग्रसित बच्चों के इलाज में शत प्रतिशत सफलता प्राप्त हो रही है. हाल ही में देवघर की एक सात वर्षीय बच्ची के दिल में छेद का ऑपरेशन किया गया, जो सफल रहा है. अब वह बच्ची सामान्य जीवन जी रही है और खुश है.

सीएचडी के लक्षण

सीएचडी से पीड़ित बच्चों के लक्षण जल्दी समझ में नहीं आते. कई बार माता-पिता को यह पता ही नहीं चलता कि बच्चे को दिल की कोई बीमारी है, जिस वजह से वे पहले सामान्य इलाज करवाते हैं. जब स्थिति बिगड़ती है, तो बच्चे को रिम्स जैसे बड़े अस्पताल में इलाज के लिए लाया जाता है. यहां पर डॉक्टर्स बीमारी का सही इलाज करते हैं. डॉ. अंशुल के अनुसार, यह बीमारी जन्मजात होती है और देश में एक अनुमान के अनुसार प्रति एक हजार बच्चों में से नौ बच्चे इस बीमारी के साथ पैदा होते हैं.

सीएचडी के प्रकार

कंजेनिटल हार्ट डिफेक्ट (सीएचडी) हृदय से संबंधित एक गंभीर बीमारी है, जिससे हृदय की सामान्य कार्य क्षमता प्रभावित होती है. सीएचडी में दिल के अंदर छेद से लेकर हृदय के किसी अंग का पूरी तरह से न होना या सही तरीके से विकसित न होना शामिल हो सकता है. इससे रक्त का प्रवाह प्रभावित होता है और बच्चे को सांस लेने में भी दिक्कत होती है. सीएचडी की समस्या मस्तिष्क से जुड़ी हो सकती है, जिससे ब्रेन का विकास रुक सकता है.

सीएचडी का पता कैसे चलता है

सीएचडी का पता गर्भावस्था में प्री-नैटल अल्ट्रासाउंड स्क्रीनिंग से लगाया जा सकता है. इसके बाद जन्म के बाद बच्चे का ईको कर भी हृदय के स्वास्थ्य की जानकारी ली जा सकती है. डॉ. अंशुल का कहना है कि जिन माता-पिता को इस बीमारी का अनुभव है, उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके आने वाले बच्चे की जांच भी की जाए. ताकि अगर बीमारी है तो उसका इलाज समय रहते हो सके.

सीएचडी के कारण

सीएचडी के होने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

• आनुवांशिक कारण – अगर माता-पिता में से किसी को यह बीमारी हो तो बच्चों को भी हो सकती है.

• जीन्स या क्रोमोजोम में परिवर्तन होना.

• गर्भावस्था के दौरान मां का सही खानपान नहीं करना या गलत दवाओं का सेवन.

• गर्भवती महिला में मधुमेह होना.

• गर्भावस्था में धूम्रपान करना.

सीएचडी के लक्षण

सीएचडी के लक्षणों में शामिल हैं:

• बच्चे का तेज सांस लेना.

• रुक-रुक कर दूध पीना.

• सर्दी-जुकाम का बार-बार होना.

• बच्चे का वजन न बढ़ना.

• बच्चे का चेहरा या शरीर नीला पड़ जाना.

रिम्स में इलाज की व्यवस्था

रिम्स में सीएचडी से पीड़ित बच्चों के लिए उच्च स्तरीय इलाज की व्यवस्था है. यहां पर हर सप्ताह छह से सात बच्चों का इलाज किया जा रहा है और उन्हें समय पर सर्जरी दी जाती है. यह सर्जरी पूरी तरह से सफल रही है, जिससे बच्चों की स्थिति में सुधार आया है. डॉ. अंशुल के अनुसार, सीएचडी के उपचार में बहुत अधिक ध्यान और सावधानी की आवश्यकता होती है, लेकिन इलाज के बाद बच्चे सामान्य जीवन जी सकते हैं.

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