झारखंड के रामगढ़ जिले में कोयला खदानों के आसपास रहने वाले अधिकांश लोग आज भी खाना बनाने के लिए कोयले का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, खदान क्षेत्र के पांच किलोमीटर के दायरे में रहने वाले 10 में से 9 लोग खाना बनाने के लिए अब भी कोयले का उपयोग कर रहे हैं, जबकि कोल इंडिया हर महीने अपने कर्मियों के खाते में एक-एक गैस सिलेंडर के लिए पैसा भेजती है।
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वार्षिक आय 15 लाख फिर भी कोयले पर निर्भरता
रामगढ़ जिले में स्थित कोयला कंपनियों में कार्यरत कर्मियों की वार्षिक आय लगभग 15 लाख रुपये तक होती है। इसके बावजूद वे गैस सिलेंडर के बजाय कोयले को प्राथमिकता दे रहे हैं। दूसरी ओर, बोकारो जिले में यह निर्भरता तुलनात्मक रूप से कम पाई गई है। वहां खदान के पांच किलोमीटर के क्षेत्र में रहने वाले 10 में से 5 लोग ही कोयले से खाना बनाते हैं।
स्वनीति इनिशिएटिव की रिपोर्ट में हुआ खुलासा
अमेरिकी संस्था स्वनीति इनिशिएटिव द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि रामगढ़ जिले के खदान क्षेत्र में रहने वाले लोगों की आमदनी अन्य क्षेत्रों में रहने वाले लोगों से अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार, इस जिले में रहने वाले लोगों की औसत वार्षिक आय करीब 1.40 लाख रुपये है, जबकि खदान क्षेत्र के पांच किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोगों की वार्षिक आय लगभग 1.42 लाख रुपये पाई गई।
रामगढ़ जिले का झारखंड की अर्थव्यवस्था में योगदान
- जिले में करीब 15 कोयला खदानें संचालित हैं।
- यहां से करीब 11.23 मिलियन टन कोयले का वार्षिक उत्पादन होता है।
- एनटीपीसी का पतरातू पावर प्लांट भी यहीं स्थित है, जिससे चार गीगावाट बिजली उत्पादन की संभावना है।
- राज्य की कुल जीडीपी में रामगढ़ जिले का योगदान 3.4 प्रतिशत है।
कोयले से गैस सिलेंडर की ओर रुझान बढ़ाने की जरूरत
कोल इंडिया द्वारा कर्मियों को हर महीने एक-एक गैस सिलेंडर का पैसा देने के बावजूद लोगों में सिलेंडर के प्रति रुझान कम देखने को मिल रहा है। इसका मुख्य कारण कोयले की आसान उपलब्धता और उसकी कम लागत मानी जा रही है। सरकार और स्थानीय प्रशासन को इस पर ध्यान देने की जरूरत है ताकि अधिक से अधिक लोग गैस सिलेंडर के उपयोग को अपनाएं और कोयले पर निर्भरता कम की जा सके।