झारखंड की संस्कृति में मकर संक्रांति सन्निकट एक विशेष त्योहार के रूप में मनाया जाता है| इस त्योहार में अब सप्ताह भर से भी कम का समय बचा हुआ है ऐसे में इसे लेकर गांवों-शहरों में तैयारियां जोर-शोर से चल रही है|
महिला, पुरुष एवं बच्चे, हर कोई अपने-अपने स्तर से मकर पर्व की तैयारी में पूरी उत्साह से जुट गया हैं। एक तरफ जहां महिलाएं घरों की साफ-सफाई, मिट्टी के दीवारों की लीपापोती तथा रंग-रोगन करने में जुटी हैं, वहीं घर के पुरुष धान से चावल निकालकर उसे पिसवाने का काम कर रहे हैं। बच्चे खजूर एवं ताड़ के पत्ते काटकर उसे गांव के पास स्थित नदी-तालाब के इर्द-गिर्द सुखाने का काम कर रहे हैं।
पिसे चावल के पीठा का होता है विशेष महत्व..
परंपरा के अनुसार, मकर एवं टुसू पर्व पर पिसे हुए चावल से बना प्रमुख आहार होता है। इसमें शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों तरह का पीठा बनाया जाता है। शाकाहारी पीठे में गुड़ डाला जाता है तो वहीं मांसाहारी पीठे में मांस। मकर के बाद भी कई दिनों तक पीठा का सेवन करने का प्रचलन है। इस दौरान लोग बड़े चाव से खुद भी पीठा खाते हैं और दूसरों को भी खिलाते हैं।
मकर पर्व के दिन सुबह उठकर पौ फटने से पहले ही गांव के जलाशय में स्नान करने की मान्यता है। इसके बाद जलाशय के इर्द-गिर्द सूखे हुए ताड़ एवं खजूर के पत्तों को जलाकर ठंड से बचने के लिए अलाव बनाया जाता है। इस दौरान ग्रामीण टुसू प्रतिमा रखकर विधिवत पूजा पाठ करते हैं, जिसमें टुसू गीतों का भी विशेष महत्व होता है। इन गीतों पर महिला व पुरुष मांदर की थाप पर खूब नाचते हैं।
गांवों में लगता है मकर मेला..
झारखंड के लोगों के लिए मकर संक्रांति का त्योहार एक महोत्सव के समान होता है। दरअसल ये कई त्योहारों का एक समूह होता है। मकर के दौरान टुसू पर्व के अलावा आख्यान जात्रा, बाउड़ी जैसे त्यौहार भी मनाए जाते हैं। इस अवसर पर गांव- गांव में मेले लगते हैं। टुसू प्रतिमाओं की प्रदर्शनी लगाई जाती है| नाच-गान के साथ एक दूसरे से मिलकर उत्साहपूर्वक त्योहार मनाते हैं।
इस वर्ष वैसे भी धान की खेती अच्छी होने के कारण किसानों में उल्लास का माहौल है। हालांकि कोविड-19 जारी कहर को देखते हुए गाइडलाइन के तहत मेला लगाने की अनुमति प्रशासन शायद ही देगा। लेकिन ग्रामीणों में इस त्योहार को लेकर उत्साह की थोड़ी भी कमी नजर नहीं आ रही है।