झारखंड के जंगलों में बाघों की वापसी से बढ़ी उम्मीद: गढ़वा और सरायकेला-खरसावां में दिखे बाघ….

झारखंड के जंगलों में बाघों की मौजूदगी ने वन्यजीव प्रेमियों और संरक्षणकर्ताओं के बीच एक नई उम्मीद जगा दी है. हाल ही में गढ़वा और सरायकेला-खरसावां जिलों में दो बाघों को देखे जाने की खबर आई है. यह घटना राज्य के वन विभाग और वन्यजीव संरक्षण परियोजनाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है. इन बाघों की उपस्थिति से झारखंड में बेहतर हो रहे पारिस्थितिक तंत्र और बढ़ते जंगल क्षेत्र का प्रमाण मिलता है.

कहां-कहां देखे गए बाघ?

हाल के दिनों में एक बाघ गढ़वा जिले में और दूसरा सरायकेला-खरसावां जिले के जंगलों में देखा गया है. वन विभाग के अधिकारियों का मानना है कि बाघों की उपस्थिति क्षेत्र के बेहतर प्राकृतिक आवास और अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों का संकेत है. हालांकि, इन बाघों की पहचान अभी पूरी तरह से स्थापित नहीं हुई है. उनके मल के नमूनों को परीक्षण के लिए भेजा गया है ताकि यह पता लगाया जा सके कि ये बाघ पड़ोसी राज्यों से आए हैं या पलामू टाइगर रिजर्व के बाघ हैं जो विभिन्न दिशाओं से यहां पहुंचे हैं.

ओडिशा से झारखंड पहुंची बाघिन

झारखंड के जंगलों में कुछ समय पहले ओडिशा के सिमलिपाल अभ्यारण्य से एक रेडियो कॉलर वाली बाघिन ‘जीनत’ ने प्रवेश किया था. यह बाघिन पूर्वी सिंहभूम के जंगलों में देखी गई थी और ओडिशा के वन अधिकारियों की टीम ने उसकी निगरानी की थी. हालांकि, झारखंड में अभी किसी भी बाघ को रेडियो कॉलर नहीं लगाया गया है, जिससे उनकी पहचान करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है.

प्रोजेक्ट टाइगर में बढ़ी उम्मीद

झारखंड में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत वन विभाग लंबे समय से बाघों की संख्या बढ़ाने और उनके संरक्षण के प्रयास कर रहा है. गढ़वा और सरायकेला-खरसावां में बाघों की उपस्थिति से यह उम्मीद जगी है कि राज्य में टाइगर कॉरिडोर को और अधिक सुदृढ़ किया जा सकता है. पलामू टाइगर रिजर्व के आसपास बेहतर पारिस्थितिक तंत्र, शिकार क्षेत्र और घास के मैदान बनाने के प्रयास भी इस दिशा में मददगार साबित हो रहे हैं.

बाघों के लिए आहार की व्यवस्था

वन विभाग ने बाघों के लिए अनुकूल माहौल बनाने के उद्देश्य से जंगलों में हिरणों को छोड़ा है. ये हिरण बाघों के लिए प्राकृतिक शिकार का स्रोत बनेंगे, जिससे उन्हें अपना स्थायी ठिकाना बनाने में आसानी होगी. इस काम में रांची के बिरसा मुंडा चिड़ियाघर की भी मदद ली गई है. हिरणों को यहां से जंगलों में छोड़ने का काम किया गया है.

झारखंड के जंगलों की स्थिति में सुधार

पिछले कुछ वर्षों में झारखंड के जंगलों में उल्लेखनीय सुधार देखा गया है. वर्ष 2021 से 2023 के बीच राज्य में 44.64 वर्ग किलोमीटर जंगल क्षेत्र बढ़ा है. 2023 में राज्य के जंगल क्षेत्र में 0.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिसमें बहुत घने जंगलों का क्षेत्रफल 34.3 वर्ग किलोमीटर बढ़ा. खुले वन क्षेत्रों में भी 58.26 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि दर्ज की गई. यह सुधार वन्यजीवों के लिए अधिक अनुकूल वातावरण बनाने में सहायक रहा है.

टाइगर कॉरिडोर का महत्व

झारखंड का पलामू टाइगर रिजर्व मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ से जुड़ता है, जो इसे एक महत्वपूर्ण टाइगर कॉरिडोर बनाता है. इस कॉरिडोर में अक्सर बाघों की आवाजाही देखी जाती है. ऐसा माना जा रहा है कि जो बाघ पहले झारखंड के जंगलों में देखे गए थे, वे अब दोबारा लौट रहे हैं.

वन विभाग के प्रयास

वन विभाग यह सुनिश्चित करने में जुटा है कि बाघ झारखंड में स्थायी रूप से बस सकें. इसके लिए बेहतर घास के मैदान, पानी की उपलब्धता और प्राकृतिक शिकार क्षेत्र तैयार किए जा रहे हैं. बाघों की नियमित निगरानी के लिए नई तकनीकों का भी उपयोग किया जा रहा है.

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