वित्तीय वर्ष 2022-23 में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को 200 करोड़ रुपये से अधिक का चंदा मिला है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ताजा रिपोर्ट में यह जानकारी सामने आई है. रिपोर्ट के अनुसार, कई क्षेत्रीय दलों ने अपनी आय में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है, जबकि कुछ दलों ने निर्वाचन आयोग को चंदा रिपोर्ट सौंपने में देरी की है.
चंदा रिपोर्ट का विवरण
एडीआर के आंकड़ों के विश्लेषण के मुताबिक, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), जननायक जनता पार्टी (जजपा), तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने अपनी चंदा आय में सबसे ज्यादा वृद्धि दर्ज की है. झामुमो ने अपनी आय में 3,685% की वृद्धि दिखाई, जो किसी भी क्षेत्रीय दल के लिए सबसे अधिक है. इसके बाद जजपा ने 1,997% और तेदेपा ने 1,795% की वृद्धि दर्ज की.
समय पर रिपोर्ट पेश करने वाले दलों की संख्या कम
एडीआर रिपोर्ट के अनुसार, 57 क्षेत्रीय दलों में से केवल 18 ने तय समय पर निर्वाचन आयोग को अपनी चंदा रिपोर्ट सौंप दी. 28 क्षेत्रीय दलों द्वारा कुल 2,119 चंदों का विश्लेषण किया गया, जिनकी कुल राशि 216.765 करोड़ रुपये थी. नियमों के अनुसार, 20,000 रुपये से अधिक का चंदा देने वाले दाताओं की जानकारी देना अनिवार्य है.
कुछ दलों ने नहीं घोषित किया चंदा
बीजू जनता दल (बीजद) और जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस समेत सात क्षेत्रीय दलों ने निर्वाचन आयोग को अपनी चंदा आय घोषित नहीं की. रिपोर्ट में देरी से चंदा रिपोर्ट प्रस्तुत करने और दाताओं की जानकारी छिपाने की प्रवृत्ति पर सवाल उठाए गए हैं.
सर्वाधिक चंदा पाने वाले दल
क्षेत्रीय दलों में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को सबसे अधिक चंदा प्राप्त हुआ.
• बीआरएस: 154.03 करोड़ रुपये (47 चंदादाताओं से)
• वाईएसआर कांग्रेस: 16 करोड़ रुपये (5 चंदादाताओं से)
• तेदेपा: 11.92 करोड़ रुपये
बीआरएस को 40 कॉरपोरेट दाताओं से 138.97 करोड़ रुपये प्राप्त हुए, जो क्षेत्रीय दलों में सबसे अधिक है. कुल चंदे का 78% कॉरपोरेट और व्यावसायिक संस्थाओं से प्राप्त हुआ, जबकि अन्य दाताओं ने 45.24 करोड़ रुपये का योगदान दिया.
कुछ दलों की आय में गिरावट
जहां कुछ दलों ने आय में वृद्धि दर्ज की, वहीं समाजवादी पार्टी (सपा) और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) जैसे दलों ने चंदे में गिरावट दर्ज की.
• सपा: 99.1% की कमी
• शिअद: 89.1% की कमी
चंदा रिपोर्ट में देरी और पारदर्शिता की कमी
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि चंदा रिपोर्ट सौंपने में देरी और पारदर्शिता की कमी गंभीर मुद्दे हैं. कई दलों ने चंदा देने वालों के ब्योरे में अंतराल दिखाया. निर्वाचन आयोग द्वारा तय नियमों के बावजूद, कुछ दल अभी भी चंदा की पारदर्शिता सुनिश्चित करने में असफल रहे हैं.