झारखंड में लागू होगा पश्चिम बंगाल का शिक्षा मॉडल: जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई पर फोकस….

झारखंड सरकार ने राज्य में जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई को मजबूती देने के लिए पश्चिम बंगाल का शिक्षा मॉडल अपनाने का फैसला किया है. इसके तहत, अधिकारियों की एक तीन-सदस्यीय टीम कोलकाता जाएगी, जो वहां के स्कूलों और विश्वविद्यालयों में इन भाषाओं की पढ़ाई के तरीके का अध्ययन करेगी. यह पहल झारखंड में केजी से लेकर पीजी तक जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं को शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है.

शिक्षा मॉडल का अध्ययन करेगी टीम

शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन के निर्देश पर गठित यह टीम पश्चिम बंगाल के स्कूलों में जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं के शिक्षण की प्रक्रिया, पाठ्यक्रम, और शिक्षकों की नियुक्ति का गहन अध्ययन करेगी. इसके साथ ही, यह टीम इन भाषाओं को पढ़ने वाले बच्चों की संख्या और उनके प्रदर्शन का भी मूल्यांकन करेगी. इस अध्ययन के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की जाएगी, जिसे सरकार को सौंपा जाएगा.

टीम की प्राथमिक जिम्मेदारियां:

• पश्चिम बंगाल के स्कूलों और विश्वविद्यालयों में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई का निरीक्षण.

• इन भाषाओं के लिए तैयार किए गए पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धतियों को समझना.

• शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया और उनकी योग्यता का अध्ययन.

• छात्रों के प्रदर्शन और इन भाषाओं के प्रति उनकी रुचि का विश्लेषण.

केजी से पीजी तक पढ़ाई का उद्देश्य

शिक्षा मंत्री ने स्पष्ट किया है कि झारखंड के बच्चों को उनकी मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषाओं में निपुण बनाना सरकार का मुख्य उद्देश्य है. इसके लिए केजी से लेकर पीजी तक की शिक्षा प्रणाली में इन भाषाओं को शामिल किया जाएगा. यह पहल न केवल बच्चों को उनकी संस्कृति और समाज से जोड़ने में मदद करेगी, बल्कि उनकी पहचान को भी सुदृढ़ करेगी. शिक्षा मंत्री ने बताया कि पश्चिम बंगाल में प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई होती है. झारखंड में इसी मॉडल को अपनाते हुए इसे जल्द लागू किया जाएगा। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी इस पहल पर अपनी सहमति व्यक्त की है.

पाठ्यक्रम और शिक्षण प्रणाली का विकास

झारखंड सरकार का लक्ष्य है कि राज्य के जनजातीय और क्षेत्रीय समुदायों के बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा देकर उन्हें सशक्त बनाया जाए. इसके तहत, शिक्षण सामग्री और पाठ्यक्रम को झारखंड के सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भों के अनुसार तैयार किया जाएगा.

प्रमुख पहल:

• प्राथमिक स्कूलों से क्षेत्रीय और जनजातीय भाषाओं को अनिवार्य विषय बनाना.

• विश्वविद्यालय स्तर तक इन भाषाओं में विशेषज्ञता के कोर्स उपलब्ध कराना.

• शिक्षकों की नियुक्ति में इन भाषाओं में दक्षता को प्राथमिकता देना.

• भाषा अनुसंधान केंद्रों की स्थापना.

शिक्षा प्रणाली में बड़ा बदलाव

यह पहल झारखंड की शिक्षा प्रणाली में एक बड़ा बदलाव लाने का संकेत है. जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं को शिक्षा का हिस्सा बनाकर सरकार राज्य के बच्चों को अपनी जड़ों से जोड़ना चाहती है. यह न केवल सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करेगा, बल्कि बच्चों के व्यक्तित्व विकास में भी सहायक होगा. शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन ने कहा कि सरकार इस प्रक्रिया को तेजी से शुरू करने के लिए प्रतिबद्ध है. बंगाल की शिक्षा प्रणाली से सीख लेकर झारखंड में इसे लागू किया जाएगा, ताकि यहां के बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा का लाभ मिल सके.

जल्द शुरू होगी प्रक्रिया

सरकार ने यह भी तय किया है कि इस योजना को जल्द से जल्द अमल में लाया जाएगा. बंगाल में अध्ययन के बाद तैयार रिपोर्ट के आधार पर झारखंड में इसका क्रियान्वयन किया जाएगा. शिक्षा विभाग इस दिशा में तेजी से काम कर रहा है, ताकि केजी से पीजी तक जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई जल्द शुरू की जा सके.

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