झारखंड हाई कोर्ट ने झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (जेएसएससी) की सीजीएल परीक्षा में पेपर लीक मामले में सीबीआई जांच की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. कोर्ट का कहना है कि याचिकाकर्ता का इस परीक्षा से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है, जिससे याचिका पर संदेह उत्पन्न होता है. कोर्ट ने कहा कि याचिका किसी अन्य उद्देश्य के तहत दायर की गई प्रतीत होती है. हालांकि, इस मामले से संबंधित एक अन्य याचिका पर अभी भी सुनवाई लंबित है.
याचिका पर कोर्ट की प्रतिक्रिया
हाई कोर्ट में मंगलवार को जेएसएससी सीजीएल परीक्षा पेपर लीक मामले की सुनवाई हुई, जिसके बाद कोर्ट ने याचिका को खारिज करने का निर्णय लिया. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता होने के कारण कोर्ट ने उनकी याचिका को मान्यता नहीं दी और कहा कि याचिकाकर्ता का परीक्षा से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं होने के कारण उनकी याचिका पर गौर नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि याचिकाकर्ता चाहें, तो वे इस मामले से संबंधित लंबित याचिका के साथ हस्तक्षेप याचिका दाखिल कर सकते हैं.
पेपर लीक मामला: परीक्षा और एसआईटी का गठन
झारखंड सामान्य स्नातक योग्यताधारी संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा (सीजीएल) 2023 की लिखित परीक्षा 28 जनवरी 2024 को आयोजित की गई थी. इस परीक्षा में बड़ी संख्या में छात्रों ने हिस्सा लिया. परीक्षा के बाद छात्रों ने पेपर लीक होने का आरोप लगाया, जिसके कारण परीक्षा को रद्द करना पड़ा. इसके बाद राज्य सरकार ने मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया. हालांकि, इस मामले को लेकर कुछ लोगों ने सीबीआई जांच की मांग की थी, जिसे हाई कोर्ट ने अब खारिज कर दिया है.
ध्वनि प्रदूषण पर कोर्ट की कड़ी प्रतिक्रिया
झारखंड हाई कोर्ट में मंगलवार को ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण की मांग वाली याचिका पर भी सुनवाई हुई. यह याचिका मुख्य न्यायाधीश एमएम रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति दीपक रोशन की खंडपीठ के समक्ष प्रस्तुत की गई थी. याचिका में कहा गया कि ध्वनि प्रदूषण की शिकायत करने वालों को धमकाया जाता है, जिससे इस मुद्दे को लेकर कोर्ट ने गंभीर रुख अपनाया है. कोर्ट ने इस मामले में रिकॉर्ड प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है, और इस पर अगली सुनवाई 29 दिसंबर को होगी.
शिकायतकर्ताओं को धमकी मिलने का मामला
सुनवाई के दौरान प्रार्थी ने खंडपीठ को सूचित किया कि जब कोई व्यक्ति पुलिस को ध्वनि प्रदूषण की शिकायत करता है, तो पुलिस द्वारा शिकायतकर्ताओं को धमकाने का प्रयास किया जाता है. प्रार्थी ने कहा कि शिकायतकर्ता की पहचान गोपनीय नहीं रहती, जिससे उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. प्रार्थी ने उदाहरण दिया कि कई धार्मिक स्थानों और व्यक्तियों द्वारा देर रात और सुबह के समय लाउडस्पीकर और डीजे का उपयोग किया जाता है, जिससे लोगों को काफी परेशानी होती है. इस तरह की शिकायतों पर पुलिस द्वारा कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती, और शिकायतकर्ता के प्रति पुलिस का रवैया सहानुभूतिपूर्ण नहीं होता.
कोर्ट का पुलिस और सरकार को निर्देश
कोर्ट ने पहले भी पुलिस और राज्य सरकार को यह निर्देश दिया था कि शिकायत करने वालों की पहचान गोपनीय रखी जाए, ताकि लोग बिना किसी डर के अपनी शिकायतें दर्ज कर सकें. कोर्ट ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना पुलिस की जिम्मेदारी है, और उन्हें किसी प्रकार की धमकी से बचाना भी सरकार का कर्तव्य है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ध्वनि प्रदूषण की शिकायतों पर उचित कार्रवाई होनी चाहिए और इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति ऐसी शिकायत दर्ज करने से घबराए नहीं.
कोर्ट की सख्त चेतावनी
कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में लापरवाही नहीं बरती जानी चाहिए. सरकार और पुलिस की यह जिम्मेदारी है कि वे शिकायतकर्ताओं की सुरक्षा के साथ उनकी गोपनीयता का भी ख्याल रखें. यदि पुलिस द्वारा शिकायतकर्ताओं को धमकाने की बात सच पाई जाती है, तो इस पर सख्त कार्रवाई की जाएगी. कोर्ट ने कहा कि किसी भी तरह की अवहेलना को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.