बिहार की मशहूर लोकगायिका शारदा सिन्हा का मंगलवार को दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया। 72 वर्षीय शारदा सिन्हा ने अपने जीवन की अंतिम सांसें एम्स के आईसीयू में लीं, जहां उन्हें कुछ समय से भर्ती किया गया था. सोमवार की शाम उनकी तबीयत अचानक बिगड़ने पर उन्हें वेंटिलेटर पर शिफ्ट करना पड़ा था. उनके पुत्र अंशुमन ने सोशल मीडिया के माध्यम से लगातार उनकी सेहत की जानकारी दी, जिससे प्रशंसक उनकी हालत से अवगत होते रहे.
शारदा सिन्हा की तबीयत में आया उतार-चढ़ाव
पिछले महीने ही शारदा सिन्हा की तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें दिल्ली एम्स में भर्ती किया गया था. शुरू में उन्हें आईसीयू में रखा गया था, लेकिन तबीयत में सुधार होने पर उन्हें प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया. इस दौरान परिवार और प्रशंसकों को उनके स्वस्थ होने की आशा जगी थी. मगर सोमवार शाम एक बार फिर उनकी हालत गंभीर हो गई, जिसके बाद उन्हें वेंटिलेटर पर शिफ्ट करना पड़ा. अंशुमन ने बताया कि इंफेक्शन के कारण उनकी मां की हालत बिगड़ी थी और वे अचेत अवस्था में थीं. सोमवार सुबह अंशुमन ने मां के साथ संवाद करने की कोशिश की, जिसमें उनकी आंखों की पुतली में हल्की हरकत देखी गई थी, जो परिवार और प्रशंसकों के लिए एक छोटी सी उम्मीद बन गई थी.
छठ महापर्व के बीच स्तब्ध प्रशंसक
शारदा सिन्हा के निधन की खबर से बिहार सहित पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई. उनके गाए छठ गीत बिहार और देश के अन्य हिस्सों में छठ महापर्व के दौरान बेहद लोकप्रिय रहते हैं. इस वक्त जब हर घर-आंगन में उनके गीत गूंज रहे थे, उनके निधन की खबर ने उनके चाहने वालों को गमगीन कर दिया. सोशल मीडिया पर प्रशंसक और शुभचिंतक उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं, और उन्हें लोकसंगीत की अपूरणीय क्षति के रूप में याद कर रहे हैं. लोग शारदा सिन्हा को उनकी मधुर आवाज़ और बिहार के लोकगीतों के प्रति उनके योगदान के लिए हमेशा याद करेंगे.
संगीत के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान
शारदा सिन्हा का नाम भारत के सुप्रसिद्ध लोकगायकों में शुमार था. बिहार की मिट्टी से जुड़ी उनकी गायिकी में बेजोड़ भावनाएं और संस्कृति की महक थी. खासकर छठ महापर्व के गीतों ने उन्हें एक विशिष्ट पहचान दिलाई. उनके गीतों में लोकसंस्कृति की आत्मा समाहित होती थी, जिसने उन्हें हर आयु और समाज के वर्गों में लोकप्रिय बनाया. उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार ने पद्म श्री और पद्म विभूषण जैसे प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजा था.
परिवार के साथ बीते कठिन दिन
शारदा सिन्हा के लिए यह वर्ष व्यक्तिगत रूप से भी चुनौतीपूर्ण रहा. कुछ महीनों पहले उनके पति का भी ब्रेन हैमरेज के कारण निधन हो गया था. इस कठिन समय में भी उन्होंने संगीत के प्रति अपनी निष्ठा को बनाए रखा और अपनी 54वीं शादी की सालगिरह भी मनाई थी. परिवारजनों और उनके चाहने वालों के लिए यह समय अत्यंत भावुक है, क्योंकि यह जीवन का एक ऐसा दौर था जहां उन्हें अपने साथी का सहारा नहीं मिल पाया.
आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा
हालांकि शारदा सिन्हा अब इस दुनिया में नहीं हैं, मगर उनके गीत और उनकी आवाज हमेशा जीवित रहेगी. बिहार और उत्तर भारत की लोकधुनों में उनकी मधुर आवाज हमेशा गूंजती रहेगी. छठ महापर्व जैसे अवसरों पर उनकी अनुपस्थिति निश्चित ही महसूस की जाएगी, लेकिन उनके गाए गीत नई पीढ़ी को प्रेरित करते रहेंगे और उनकी यादों को संजोए रखेंगे.