झारखंड में इस बार का विधानसभा चुनाव इंडिया गठबंधन के लिए कई चुनौतियां लेकर आया है. हालांकि गठबंधन का सीट बंटवारा हो चुका है और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) को 43 सीटें मिली हैं, वहीं कांग्रेस के हिस्से में 30 सीटें आई हैं. लेकिन कांग्रेस की प्रदेश स्तर पर चुनावी तैयारी और आक्रामकता में कमी गठबंधन की सत्ता की राह में रोड़ा बन सकती है. पिछली बार 16 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस के लिए इस बार उसी स्ट्राइक रेट को दोहराना एक बड़ी चुनौती है. झारखंड में फिलहाल भाजपा के मुकाबले कांग्रेस की चुनावी सक्रियता और आक्रामकता में कमी साफ दिखाई दे रही है.
गठबंधन में कांग्रेस की भूमिका और चुनावी सुस्ती
झारखंड में इस बार कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा तो है, लेकिन चुनावी जमीनी स्तर पर उसकी सक्रियता नदारद नजर आ रही है. भाजपा के दर्जनों आला नेता, केंद्रीय मंत्री और दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री झारखंड में मैदान में उतर चुके हैं. दूसरी ओर, कांग्रेस के पास प्रदेश स्तर पर ऐसे बड़े और जनाधार वाले नेता नहीं हैं, जो चुनावी लहर बना सकें. कांग्रेस की ओर से टिकट वितरण में भी सुस्ती दिखाई दी, जिससे प्रत्याशियों के मनोबल पर असर पड़ा है. पहली सूची में 21 प्रत्याशियों के नाम का ऐलान किया गया, लेकिन इसके बाद नामांकन की आखिरी तारीख से एक दिन पहले दूसरी और तीसरी सूची जारी की गई, जिससे प्रत्याशियों में अनिश्चितता बनी रही. इसका परिणाम यह हुआ कि कई प्रत्याशी समय पर अपनी तैयारियां पूरी नहीं कर पाए.
भाजपा की आक्रामक रणनीति और कांग्रेस की चुनौती
भाजपा झारखंड में अपनी रणनीति को लेकर बेहद आक्रामक रही है. भाजपा के पास दर्जनों नेता मैदान में सक्रिय हैं, जो पार्टी के लिए माहौल बना रहे हैं. विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री भी चुनाव प्रचार में हिस्सा ले रहे हैं. इसके विपरीत कांग्रेस में बड़े नेता और प्रभावी प्रचारक नेताओं की कमी महसूस हो रही है. इस कमी का सीधा असर कांग्रेस की चुनावी तैयारियों और उसकी जनसंपर्क मुहिम पर पड़ता दिखाई दे रहा है.
सीट बंटवारे में देरी और उम्मीदवारी पर असमंजस
कांग्रेस के सीट बंटवारे में देरी ने भी चुनावी तैयारियों को प्रभावित किया है. कांग्रेस ने पहली सूची में 21 प्रत्याशियों का नाम जारी किया, लेकिन दूसरी और तीसरी सूची नामांकन की अंतिम तिथि से एक दिन पहले जारी की गई. इससे प्रत्याशियों में अनिश्चितता की स्थिति बनी रही, और वे चुनावी तैयारी और जनसंपर्क में पीछे रह गए. नामांकन की तैयारी में प्रत्याशियों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. इससे पता चलता है कि कांग्रेस ने चुनावी मैदान में खुद को तैयार करने में कहीं न कहीं देरी की है.
राजद और माले के प्रदर्शन पर निर्भरता
गठबंधन में राजद और माले का भी महत्व है. राजद सात सीटों पर और माले चार सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जो कुल मिलाकर गठबंधन की 11 सीटें बनाती हैं. इन सीटों पर बेहतर प्रदर्शन करना गठबंधन के लिए आवश्यक है. राजद और माले के अच्छे प्रदर्शन से गठबंधन को मजबूती मिल सकती है और चुनाव में बेहतर परिणाम की संभावना बढ़ सकती है. इन सीटों पर कांग्रेस और झामुमो की ‘फ्रेंडली फाइट’ भी देखने को मिल सकती है, लेकिन इसका सीधा असर गठबंधन की एकता और वोट बैंक पर पड़ सकता है.
पिछले प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती
पिछली बार के चुनाव में कांग्रेस ने 16 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार वैसा प्रदर्शन दोहराना चुनौतीपूर्ण होगा. कांग्रेस के दो प्रमुख नेताओं प्रदीप बलमुचू और बंधु तिर्की के शामिल होने से पार्टी को कुछ मजबूती मिली है, लेकिन चुनावी जमीनी तैयारी की कमी और आक्रामकता में पीछे रहना पार्टी की सफलता की राह में बाधा बन सकता है. ऐसे में अगर कांग्रेस अपना पिछला स्ट्राइक रेट बरकरार नहीं रख पाई, तो इंडिया गठबंधन की सत्ता की राह कठिन हो सकती है.
जनता के बीच कांग्रेस का कमजोर जनाधार
प्रदेश कांग्रेस के पास बड़े जनाधार वाले नेता कम हैं, जो जनता के बीच एक प्रभावशाली छवि बना सकें. जनाधार वाले नेताओं की कमी और बड़े राष्ट्रीय नेताओं का अभाव कांग्रेस को कमजोर कर सकता है. भाजपा की तुलना में कांग्रेस का जनाधार कमजोर नजर आ रहा है, जबकि भाजपा अपनी चुनावी आक्रामकता को लेकर काफी सक्रिय रही है. इससे गठबंधन के जीत की संभावनाएं भी प्रभावित हो सकती हैं.