झारखंड की राजनीति में जेल का एक खास और पुराना संबंध रहा है. यहां कई ऐसे नेता हुए हैं जिन्होंने जेल में रहकर चुनाव जीता और अपने करियर में चार चांद लगाए. वहीं, कुछ नेताओं के राजनीतिक जीवन पर जेल यात्रा का नकारात्मक असर भी पड़ा है. 2024 के विधानसभा चुनाव में भी इस जेल फैक्टर का अहम योगदान देखने को मिल रहा है. इस बार भी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और अन्य पार्टियों के नेता जेल के अनुभव को जनता से जोड़कर वोट हासिल करने की कोशिश में जुटे हैं.
झामुमो का ‘जेल का जवाब जीत से’ नारा और उसकी राजनीतिक रणनीति
झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष और राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने जेल अनुभव को चुनावी मुद्दा बना लिया है. हेमंत सोरेन हाल ही में एक मामले में जेल गए थे और करीब चार महीने पहले जमानत पर रिहा हुए. अब वे हर चुनावी सभा में यह कह रहे हैं कि उन्होंने झारखंड के हक का 1 लाख 36 हजार करोड़ मांगने की कोशिश की, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें जेल में डाल दिया गया. उनका दावा है कि केंद्र सरकार झारखंड की जनता के साथ अन्याय कर रही है और उन्हें उनके अधिकारों से वंचित कर रही है. इस तरह, झामुमो का “जेल का जवाब जीत से” नारा उनके समर्थकों को एकजुट करने का जरिया बन रहा है.
भाजपा की जेल यात्रा पर आरोप और प्रतिक्रिया
भाजपा ने भी इस मुद्दे को भुनाने का कोई मौका नहीं छोड़ा है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं का कहना है कि हेमंत सोरेन और उनकी सरकार में मंत्री रहे आलमगीर आलम समेत कई अधिकारियों की जेल यात्रा भ्रष्टाचार के कारण हुई. भाजपा के असम से आए नेता और मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी अपनी सभाओं में इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि हेमंत सोरेन जैसे नेताओं की तुलना स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों से नहीं की जा सकती. भाजपा का आरोप है कि यह नेता भ्रष्टाचार के मामलों में जेल गए थे, न कि जनसेवा के लिए.
कोडरमा और पाकुड़ में जेल फैक्टर का जोरदार असर
झारखंड की कोडरमा और पाकुड़ सीटों पर इस बार चुनाव में जेल फैक्टर की जबरदस्त चर्चा है. कोडरमा में राजद के उम्मीदवार सुभाष यादव, जो एक बहुचर्चित बालू घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जेल में हैं, ने जेल से ही अपना नामांकन भरा. वहीं, पाकुड़ सीट पर कांग्रेस ने हेमंत सोरेन सरकार के पूर्व मंत्री आलमगीर आलम की पत्नी निशात आलम को उम्मीदवार बनाया है. निशात के पास राजनीतिक अनुभव भले न हो, लेकिन वे अपने पति की लोकप्रियता के सहारे चुनाव मैदान में उतरी हैं.
गैंगस्टर अमन साहू और नक्सली बैजनाथ का चुनाव लड़ने का प्रयास विफल
झारखंड में सिर्फ राजनीतिक ही नहीं, बल्कि कई आपराधिक मामलों में शामिल लोग भी चुनावी राजनीति में हाथ आजमाने का प्रयास कर रहे हैं. गैंगस्टर अमन साहू, जो 150 से ज्यादा आपराधिक मामलों में जेल में बंद हैं, ने चुनाव लड़ने के लिए अदालत में याचिका डाली, लेकिन अदालत ने इसे मंजूर नहीं किया. वहीं, मनिका सीट से कुख्यात नक्सली कमांडर बैजनाथ सिंह ने भी नामांकन दाखिल किया था, लेकिन तकनीकी कारणों से उसका नामांकन खारिज हो गया.
झारखंड में जेल में रहकर नेताओं की जीत की ऐतिहासिक मिसालें
झारखंड के चुनावी इतिहास में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जब नेता जेल में रहकर चुनाव जीत गए. 1977 में आपातकाल के दौरान जेल में बंद मार्क्सवादी समन्वय समिति के नेता एके राय धनबाद लोकसभा क्षेत्र से सांसद बने थे. इसी तरह शिबू सोरेन, विनोद बिहारी महतो और निर्मल महतो जैसे नेताओं ने जेल में रहते हुए चुनाव में जीत हासिल की थी.
यदुनाथ पांडेय का चुनाव जीतना और जेल से बाहर आना
1989 में हजारीबाग में सांप्रदायिक दंगों के कारण बजरंग दल के नेता यदुनाथ पांडेय को जेल में डाल दिया गया था. इसके बाद इसी साल चुनाव हुए और भाजपा ने उन्हें हजारीबाग से उम्मीदवार बनाया. जेल से बाहर आकर उन्होंने चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीत दर्ज की. इसके बाद, यदुनाथ पांडेय संसद में पहुंचे और उनकी यह जीत झारखंड की राजनीति में एक मिसाल बन गई.
सासाराम के नक्सली कमांडर का चुनाव जीतना
2009 के आम चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सासाराम जेल में बंद नक्सली कमांडर कामेश्वर बैठा को अपना उम्मीदवार बनाया. कामेश्वर बैठा ने जेल में रहते हुए ही यह चुनाव जीता और यह घटना देशभर में चर्चा का विषय बन गई. उस समय उनके खिलाफ 60 से अधिक मामले दर्ज थे, लेकिन उनकी जीत ने चुनावी राजनीति में जेल फैक्टर की अहमियत को और बढ़ा दिया.
पौलुस सुरीन की जेल से चुनावी जीत
2009 के विधानसभा चुनाव में झामुमो ने खूंटी से मसीह चरण पूर्ति और तोरपा से पौलुस सुरीन को उम्मीदवार बनाया. मसीह को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन पौलुस सुरीन ने जेल में रहते हुए ही जीत हासिल की. इसके बाद 2009 में तमाड़ सीट पर हुए उपचुनाव में राजा पीटर ने झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन को हराया, जो कई बार जेल जा चुके थे.
जेल यात्रा से करियर पर लगा ग्रहण: मधु कोड़ा, एनोस एक्का और हरिनारायण राय
जहां कुछ नेताओं ने जेल में रहते हुए जीत हासिल की और अपने करियर को नई ऊंचाई पर पहुंचाया, वहीं दूसरी ओर कुछ नेताओं के करियर पर जेल यात्रा के बाद ग्रहण लग गया. इनमें प्रमुख नाम हैं झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा, पूर्व मंत्री एनोस एक्का और हरिनारायण राय. मधु कोड़ा, जो झारखंड के मुख्यमंत्री भी रहे थे, कई भ्रष्टाचार मामलों में फंसने के बाद जेल गए और उनका राजनीतिक करियर भी कमजोर हो गया. एनोस एक्का और हरिनारायण राय के साथ भी ऐसा ही हुआ.