एनडीए में सीटों का बंटवारा और प्रत्याशियों की घोषणा को लेकर झारखंड में स्थिति पेचीदा बनी हुई है. शुक्रवार को भी प्रत्याशियों के नामों की घोषणा नहीं हो पाई, हालांकि सीट शेयरिंग का फॉर्मूला फाइनल हो चुका है. इस देरी के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं, जिसमें प्रमुख हैं भाजपा के अंदरूनी मतभेद और कुछ विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों के नामों को लेकर असहमति.
सीटों का गुणा-गणित: प्रमुख विवादास्पद सीटें
रांची, हटिया, कांके, कोडरमा, बाघमारा और जमशेदपुर पूर्वी जैसी सीटों पर भाजपा के प्रत्याशियों का नाम अब तक तय नहीं हो पाया है. इसके पीछे विभिन्न कारणों से पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के आपसी टकराव को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. इस कारण से भाजपा की केंद्रीय नेतृत्व को सूची पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता महसूस हुई है. एनडीए में शामिल सभी दलों के बीच सीट शेयरिंग का फॉर्मूला पहले से ही तय हो चुका है. भाजपा, आजसू, जदयू और लोजपा (आर) के बीच सीटों का बंटवारा कर दिया गया है, लेकिन भाजपा के कुछ उम्मीदवारों के नाम सामने आने के बाद कुछ क्षेत्रों में विरोध शुरू हो गया है. हुसैनाबाद, दुमका, जामा, मधुपुर और धनबाद जैसे क्षेत्रों में पार्टी कार्यकर्ता विभिन्न गुटों में बंट गए हैं.
सीट शेयरिंग पर एकजुटता का संदेश
हालांकि, सीट शेयरिंग को लेकर एनडीए में एकता का संदेश देने की कोशिशें जारी हैं. एनडीए के नेताओं ने एक दूसरे का हाथ थामकर यह संकेत दिया कि वे एकजुट होकर चुनाव लड़ेंगे. लेकिन, प्रत्याशियों की घोषणा में देरी ने उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं में भ्रम पैदा कर दिया है. भाजपा के प्रदेश सह चुनाव प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि 48 घंटे के भीतर प्रत्याशियों की घोषणा की जानी थी, लेकिन कुछ कारणों से इसमें देरी हो गई. अब शनिवार या रविवार तक प्रत्याशियों के नामों की घोषणा की जाएगी.
प्रत्याशियों की घोषणा और भगदड़ की आशंका
इस बात की भी आशंका जताई जा रही है कि जैसे ही भाजपा अपनी सूची जारी करेगी, टिकट की आस लगाए कई नेता विरोधी खेमे में जा सकते हैं. इसे रोकने के लिए पार्टी ने ‘प्लान बी’ पर काम करना शुरू कर दिया है. इस बीच यह भी चर्चा है कि भाजपा कुछ केंद्रीय मंत्रियों और बड़े नेताओं को भी चुनावी मैदान में उतार सकती है. कोडरमा सीट पर नीरा यादव पिछली बार बहुत कम अंतर से जीती थीं, इसलिए इस बार पार्टी अन्नपूर्णा देवी को वहां से उम्मीदवार बनाने पर विचार कर रही है. पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को भी एक प्रमुख सीट से उतारने की संभावना है.
सिटिंग विधायकों के टिकट पर संकट
पार्टी के कुछ सिटिंग विधायकों के टिकट भी कट सकते हैं, जिसकी वजह से कई विधायक पहले ही पार्टी छोड़ चुके हैं. जमुआ विधायक केदार हाजरा पहले ही झामुमो में शामिल हो गए हैं, और छत्तरपुर विधायक का भी टिकट कट सकता है. पार्टी की योजना है कि उन सीटों को चिन्हित किया जाए जहां एंटी-इनकंबेंसी यानी सत्ता-विरोधी लहर का असर है.
एनडीए के नेताओं का बयान
भाजपा के प्रदेश चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि एनडीए विकास और सुशासन का प्रतीक है, और वह इंडी गठबंधन के कुशासन का अंत करके ही चैन की सांस लेंगे. उन्होंने कहा कि झारखंड की मौजूदा सरकार ने राज्य को तबाही और बर्बादी के कगार पर पहुंचा दिया है. वहीं, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा कि राज्य में रोटी, माटी और बेटी की सुरक्षा के लिए लड़ाई लड़नी होगी. उन्होंने हेमंत सोरेन सरकार पर आरोप लगाया कि पिछले पांच सालों में किसानों, महिलाओं, मजदूरों और युवाओं के साथ धोखा हुआ है.
प्रमुख सीटों पर एनडीए का गणित
जमशेदपुर पूर्वी
जमशेदपुर पूर्वी सीट पर भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के दबाव के कारण यह सीट जदयू के लिए नहीं छोड़ी. इसके परिणामस्वरूप जदयू को जमशेदपुर पश्चिमी सीट पर संतोष करना पड़ा, जहां से सरयू राय दो बार विधायक रह चुके हैं.
चतरा
चतरा एससी के लिए आरक्षित सीट है. भाजपा का यहां कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं है, इसलिए यह सीट लोजपा के लिए छोड़ी गई है.
मांडू
मांडू सीट पर भाजपा विधायक जय प्रकाश भाई पटेल के कांग्रेस में जाने के बाद, भाजपा के पास कोई बड़ा नेता नहीं बचा. इसलिए भाजपा ने इस सीट को आजसू के लिए छोड़ दिया है.
इचागढ़
भाजपा ने इचागढ़ सीट भी आजसू के लिए छोड़ी है, क्योंकि आजसू के हरेकृष्ण महतो वहां से मजबूत उम्मीदवार हैं.
ढूंडी
कुरमी बहुल इस सीट पर भाजपा और झामुमो के बीच सीधा मुकाबला है. भाजपा ने यह सीट अपने पास रखने पर जोर दिया, जबकि आजसू भी इसे चाहती थी.
एनडीए की रणनीति और आगे की राह
एनडीए ने झारखंड में अपनी सीट शेयरिंग रणनीति को स्पष्ट कर दिया है. हालांकि, भाजपा के उम्मीदवारों की घोषणा में हो रही देरी से प्रत्याशियों और कार्यकर्ताओं में निराशा फैल रही है. पार्टी ने अंदरूनी विरोध और संभावित भगदड़ की स्थिति को संभालने के लिए वैकल्पिक रणनीति भी तैयार कर ली है. अब देखना यह है कि प्रत्याशियों की घोषणा के बाद क्या पार्टी अपने अंदरूनी मतभेदों को सुलझाकर एकजुट होकर चुनावी मैदान में उतर पाती है या नहीं.