विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए राज्य के राजनीतिक दलों में गतिविधियां तेजी से बढ़ गई हैं. चुनावी माहौल में बैठकों, रैलियों और घोषणाओं के साथ ही विरोधी दलों को कमजोर करने के लिए उठापटक और दल-बदल का दौर भी जोर पकड़ रहा है. खासकर, एक दल को छोड़कर दूसरे दल में शामिल होने वाले नेताओं की संख्या में भी इजाफा हुआ है.
नेताओं का भाजपा की ओर रुख
इन दिनों सबसे ज्यादा नेता भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर रुख कर रहे हैं. हालांकि, भाजपा के लिए यह स्थिति पूरी तरह से फायदेमंद नहीं साबित हो रही है, क्योंकि बाहरी नेताओं के आने से पार्टी के भीतर भी कुछ मुश्किलें पैदा हो रही हैं. चुनाव से पहले विभिन्न दलों से प्रभावी नेताओं का भाजपा में शामिल होना जारी है, जिससे कई सीटों पर उन्हें चुनाव लड़ाने की संभावनाएं बढ़ रही हैं. इस स्थिति ने भाजपा के भीतर पहले से सक्रिय नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच असंतोष पैदा कर दिया है. वे मानते हैं कि बाहरी नेताओं के लिए सीटें सुरक्षित करने से पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं की अनदेखी हो रही है. इसका उदाहरण पलामू जिले के हुसैनाबाद में देखने को मिला है, जहां एनसीपी विधायक कमलेश कुमार सिंह के भाजपा में शामिल होने की खबर के बाद स्थानीय नेताओं ने विरोध जताया है.
स्थानीय नेताओं का विरोध
पलामू में इस मुद्दे को लेकर भाजपा के स्थानीय नेताओं ने पार्टी संगठन पर दबाव बनाया और यहां तक कि इस्तीफे की धमकी भी दी. भाजपा में बाहरी नेताओं के साथ-साथ उनके समर्थकों के आने से स्थानीय स्तर पर पार्टी की राजनीति प्रभावित हो रही है. कई जगहों से ऐसी ही शिकायतें भाजपा के प्रदेश नेतृत्व को मिल रही हैं. इस चुनौती से निपटने के लिए भाजपा ने अपने चुनाव सह प्रभारी हिमंत बिस्वा सरमा को आगे किया है. सरमा ने हाल ही में स्पष्ट किया कि आने वाले नेताओं की सूची लंबी है, लेकिन पार्टी सभी मामलों पर गहन विचार के बाद ही निर्णय लेगी.
गठबंधन की चुनौती
भाजपा को बाहरी नेताओं के अलावा गठबंधन के मोर्चे पर भी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. पार्टी ने राज्य में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के साथ गठबंधन किया है, लेकिन इस गठबंधन की वजह से भी भाजपा के कुछ नेताओं और कार्यकर्ताओं में नाराजगी है. जदयू के साथ सीटों के तालमेल के तहत कुछ सीटों पर भाजपा के पुराने प्रत्याशी चुनाव नहीं लड़ पाएंगे, क्योंकि वे सीटें जदयू के खाते में जा सकती हैं. ऐसे में भाजपा के कार्यकर्ताओं को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है. इसके अलावा, जदयू का संगठनात्मक ढांचा राज्य में उतना मजबूत नहीं है, जिसके कारण उसे भाजपा पर अधिक निर्भर रहना पड़ेगा. सीटों के तालमेल से भाजपा के कुछ कार्यकर्ताओं का उत्साह भी कम हो सकता है. भाजपा के प्रदेश नेतृत्व को इस समस्या का अंदाजा है और वे इसे लेकर चिंतित हैं.
भाजपा का आंतरिक संतुलन
भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने के अपने फायदे और नुकसान दोनों हैं. यह फैसला पूरी तरह से केंद्रीय नेतृत्व पर निर्भर है और प्रदेश नेतृत्व केंद्रीय निर्देशों के अनुसार ही कार्य करेगा. उन्होंने यह भी कहा कि गठबंधन के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करने की कोशिश की जाएगी, ताकि चुनाव में किसी तरह की दिक्कत न हो. अभी स्थिति यह है कि भाजपा अपने भीतर बाहरी नेताओं के आने से पैदा हो रहे असंतोष को संभालने के साथ-साथ गठबंधन के तहत सीटों के तालमेल की चुनौतियों से भी निपटने की कोशिश कर रही है. दोनों मोर्चों पर संतुलन बिठाना पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा साबित होगी, जिसमें शीर्ष नेतृत्व की भूमिका निर्णायक होगी. चुनाव की तारीखें नजदीक आने के साथ ही इन चुनौतियों का समाधान खोजना पार्टी के लिए जरूरी हो जाएगा, ताकि पार्टी एकजुट होकर चुनाव मैदान में उतर सके.