श्रावणी मेले का आकर्षण साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है. बीते 17 दिनों में ही इस मेले में 29 लाख श्रद्धालु जलाभिषेक करने के लिए पहुंचे हैं. सिर्फ 7 अगस्त को ही 1.67 लाख कांवड़ियों ने बाबा बैद्यनाथ के चरणों में जल चढ़ाया. इस दिन की आय 49 लाख रुपये तक पहुंच गई थी. इसे देखते हुए इस बार मेला अब तक का सबसे बड़ा और व्यस्त माना जा रहा है.
व्यवस्थाओं का प्रबंधन
बढ़ती भीड़ को संभालने के लिए प्रशासन ने व्यापक व्यवस्थाएँ की हैं. पूरे मेले के दौरान सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद रखी गई है. इसके लिए जिला प्रशासन ने विभिन्न विभागों की सहायता ली है. देवघर और आसपास के क्षेत्रों में विभिन्न मार्गों पर पुलिस बल तैनात किए गए हैं, ताकि किसी भी प्रकार की अव्यवस्था ना हो. इसके अलावा, श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए रास्तों में अस्थाई कैंप, शौचालय, पेयजल और प्राथमिक चिकित्सा केंद्र बनाए गए हैं. इन व्यवस्थाओं का मुख्य उद्देश्य श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की कठिनाई से बचाना और उन्हें सुरक्षित तरीके से जलाभिषेक करने का अवसर प्रदान करना है.
स्वास्थ्य सेवाएँ
स्वास्थ्य विभाग भी मेले के दौरान अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. इस बार 98 हजार से अधिक कांवड़ियों को स्वास्थ्य सेवा प्रदान की गई है. मेले के दौरान अचानक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करने वाले कांवड़ियों को तुरंत उपचार के लिए स्वास्थ्य केंद्रों में भेजा जाता है. देवघर के सरकारी अस्पताल और अस्थायी स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों और चिकित्सा कर्मियों की टीम हमेशा तैयार रहती है, ताकि किसी भी आपात स्थिति से निपटा जा सके.
जलाभिषेक की परंपरा और महत्व
श्रावणी मेला भारत की सबसे पुरानी और महत्वपूर्ण धार्मिक परंपराओं में से एक है. कांवड़िये अपनी यात्रा के दौरान गंगाजल लेकर चलते हैं, जिसे वे बाबा बैद्यनाथ के ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाते हैं. इस यात्रा का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है, और इसे शिवभक्तों द्वारा पुण्य अर्जित करने का सबसे पवित्र तरीका माना जाता है. इस परंपरा के अनुसार, कांवड़िये किसी भी प्रकार का धूम्रपान, शराब सेवन या मांसाहार नहीं करते और भगवान शिव की पूजा करते हैं. उनके अनुसार, यह यात्रा उनके लिए तपस्या का एक रूप है, जिसमें वे कष्ट सहकर भी भगवान शिव की भक्ति में लीन रहते हैं.
आय का बड़ा स्रोत
श्रावणी मेला न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह देवघर की अर्थव्यवस्था के लिए भी बहुत फायदेमंद है. मंदिर को अब तक 17 दिनों में तीन करोड़ रुपये की आय हो चुकी है, जो दर्शाता है कि यह मेला धार्मिक आयोजन के साथ-साथ आर्थिक दृष्टि से भी कितना महत्वपूर्ण है. स्थानीय दुकानदारों और व्यापारियों के लिए भी यह मेला आर्थिक रूप से समृद्धि का अवसर लेकर आता है. कांवड़ियों के लिए आवश्यक वस्तुएं, जैसे कि पूजा सामग्री, प्रसाद, और अन्य सामानों की बिक्री के कारण स्थानीय बाजारों में रौनक छा जाती है.
पर्यावरण का ध्यान
प्रशासन और स्थानीय निवासियों ने इस बार मेले के दौरान पर्यावरण का विशेष ध्यान रखा है. प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने के लिए विशेष उपाय किए गए हैं. कांवड़ियों को प्लास्टिक के बजाय कपड़े के थैले इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. इसके साथ ही, मेला क्षेत्र में सफाई व्यवस्था भी बेहतर बनाई गई है, ताकि पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे.
पुलिस और सुरक्षा बलों की तैनाती
इस बार मेले के दौरान किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना से निपटने के लिए पुलिस और सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है. कुल 31 कंपनी के सुरक्षा बलों को देवघर और आसपास के क्षेत्रों में तैनात किया गया है, जिसमें पुलिस के 36 हजार जवान शामिल हैं. इसके अलावा, ट्रैफिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए विशेष दल भी तैनात किए गए हैं, ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो.