टैगोर हिल पर मिली दुर्लभ एनमोॅलस नवाब तितली की प्रजाति …

रांची के टैगोर हिल पर दुर्लभ प्रजाति की तितली एनमोॅलस नवाब (पटालूरा एस्पिरयस) मिली है. संत जेवियर्स कॉलेज के जीव विज्ञान विभाग के स्नातकोत्तर सत्र 2021-2023 के छात्र देवाशीष महतो एवं छात्रा अंशिता ने इसकी खोज की है. विभाग के डॉ. मनोज कुमार (विभागाध्यक्ष) एवं डॉ. भारती सिंह रायचौधरी के मार्गदर्शन में दोनों छात्रों ने तितलियों पर कार्य करते हुए इसकी खोज की है. इस खोज को एक प्रोजेक्ट शोधकार्य के तौर पर जुलाई अंक में प्रकाशित किया गया है. इसके अतिरिक्त मार्गदर्शन में सत्र 2022-2024 की छात्रा दीपाली साहू ने भी तितलियों पर कार्य कर एक नया रिकॉर्ड दर्ज किया है. यह जानकारी देते हुए डॉ. मनोज कुमार ने बताया कि इस प्रजाति का सबसे पहला रिकॉर्ड 1887 में बंगाल में पाया गया था. फिर यह तितली झारखंड में मिली है.

विधार्थी लगातार तितलियों की विविधता पर कर रहे हैं शोध

ज्ञात हो कि डॉ. मनोज कुमार के मार्गदर्शन में स्नातकोत्तर जीवविज्ञान विभाग के एंटोमोलॉजी स्पेशलाइजेशन के विद्यार्थी निरंतर तितलियों की विविधता पर शोध कर रहे हैं. अभी तक उनके मार्गदर्शन में विभिन्न वैज्ञानिक शोध पत्रिकाओं में एंटोमोलॉजी स्पेशलाइजेशन के विद्यार्थियों के कई शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं. विभागाध्यक्ष डॉ. कुमार ने बताया कि कॉलेज के प्राचार्य फादर टोनी क्लडस, फादर डेविड रोसेट, फादर नवीन लकड़ा, डॉ. फादर आर्मी मिंज के सहयोग एवं प्रोत्साहन से विभाग को आगे बढ़ाने का कार्य हो रहा है और यह इस समर में मार्गदर्शन का परिणाम है.

1887 में पहली बार मिली थी पटालूरा एस्पिरयस

सबसे पहले 1887 में पटालूरा एस्पिरयस तितली की पहचान की थी जो बंगाल के फुलबारी डिवो में मिली थी. इन तितलियों को आमतौर पर नवाब के नाम से जाना जाता है. पटालूरा एस्पिरयस प्रजाति की यह तितली पहली बार झारखंड में मिली है.

दुर्लभ प्रजाति की तितलियों का झारखंड में मिलना महत्वपूर्ण

डॉ. मनोज कुमार ने बताया कि एंटोमोलॉजी स्पेशलाइजेशन से अब तक इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के खोजी कार्य हुए हैं और इस प्रजाति की तितलियों का झारखंड में मिलना यह पहला मामला है. वहीं अभी तक माना जाता था कि इन तितलियों की कोई गिनती नहीं होती थी. चूंकि तितली को दुर्लभ तितलियों में रखा गया है. इसका पंखों का फैलाव लगभग 2.5 सेंटी होता है. वर्ष 2013 में चीन में 200 मिलिमीटर वर्षा में हुई पुरानी जीवाश्म की खोज से यह पता चलता है. लेकिन भारत में पहली बार इस प्रजाति की खोज झारखंड के रांची शहर में हुई है.

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