जगन्नाथ रथ यात्रा: भक्तों की भारी भीड़, दुकानदारी रही निराशाजनक..

रांची के धुर्वा में प्रभु जगन्नाथ, अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ, मौसीघर से वापस मुख्य मंदिर लौट आए हैं. इस दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालु प्रभु के रथ को खींचते हुए नजर आए. बुधवार की दोपहर चार बजे, सैकड़ों भक्त भगवान जगन्नाथ समेत सभी विग्रहों को रथ पर आरूढ़ कर रस्सी से खींचकर मुख्य मंदिर तक लाए. जब भगवान जगन्नाथ अपने रथ पर सवार होकर मुख्य मंदिर की ओर रवाना हो रहे थे, तब उनके नाम का जयकारा लगाया जा रहा था. भक्तों की भीड़ भगवान जगन्नाथ की एक झलक पाने के लिए पूरी तरह से बेताब दिखी. दूसरी तरफ, भगवान जगन्नाथ के रथ की रस्सी थामे श्रद्धालु उनके अप्रतिम श्रृंगार को निहारते रहे.

भक्तों में जबरदस्त उत्साह
हजारों भक्त भगवान जगन्नाथ के मुख्य मंदिर वापसी के दौरान उनके रथ को खींचते हुए नजर आए. रथ मेला में मंगलवार को लोगों ने जमकर खरीदारी की. महिलाओं ने घरेलू सामान खरीदा और बच्चों ने झूले का आनंद लिया. हालांकि, रुक-रुक कर हो रही बारिश के कारण लोगों का आनंद थोड़ा फीका रहा.

दुकानदारों की मायूसी
दूसरी तरफ, इस बार दुकानदारों के लिए मेले की रंगत फीकी रही. दरअसल, दुकानदारों से दुकान लगाने के लिए ज्यादा पैसे लिए गए थे. इस मेले के लिए 1 करोड़ 92 लाख रुपए में टेंडर हुआ था, जो पिछले साल की तुलना में ढाई गुणा से भी अधिक था. पिछले साल मेला लगाने के लिए टेंडर प्रक्रिया से इसका ठेका दिया गया था, जिसमें आरएस इंटरप्राइजेज ने 75 लाख की सबसे ऊंची बोली लगाकर टेंडर लिया था.

पुरी की तर्ज पर रांची में रथ यात्रा
रांची में पुरी की तर्ज पर रथ यात्रा निकाली जाती है, जो लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र होता है. मेला में तरह-तरह की दुकानें लगाई जाती हैं. राज्य के विभिन्न जिलों और दूसरे राज्यों से कारोबारी रांची पहुंचते हैं और मेले में अपनी दुकानें लगाते हैं. मेले में खिलौने से लेकर गृह सज्जा और हर तरह के जरूरत के सामानों की दुकानें लगाई जाती हैंमेले में पूरी तरह झारखंडी रंगत देखने को मिलती है, जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है.

दुकानदारों को उठाना पड़ा भारी नुकसान
चार एकड़ में फैला परिसर, जो हर वर्ष सैकड़ों लोगों के लिए उम्मीदों का मेला हुआ करता था, इस बार दुकान की उंची कीमतों ने सभी को निराश किया. बंगाल से खिलौने की दुकान लगाने वाले श्याम मुखर्जी कहते हैं कि वह पिछले 23 सालों से इसी मेले में आ रहे हैं, लेकिन कभी इतना नुकसान नहीं झेलना पड़ा था. 2 हजार प्रति स्कावयर फिट के हिसाब से दुकान के लिए 10 दिनों में उन्हें 24 हजार देने पड़े, लेकिन कोई फायदा नहीं हो सका.

24 सालों में सबसे बड़ा नुकसान
मंदिर के सामने भुट्टा बेच रहे राहू साहू कहते हैं कि उन्होंने पूरी जिंदगी इसी मंदिर के बगल में प्रसाद की दुकान लगाकर बिता दी. लेकिन इस बार छोटी दुकान के लिए 10 हजार मांगने लगे, जिससे अब वह सड़क पर सामान बेच रहे हैं. बंगाल से मिठाई की दुकान लगाने वाले राम दयाल कहते हैं कि इस बार किसी तरह बस दुकान चली है. ज्यादा भाड़ा होने के कारण 24 सालों में सबसे ज्यादा नुकसान इस बार मेले में झेलना पड़ा है.

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