जगन्नाथपुर मेला: दूल्हे का मौर और माली समाज की परंपरा का अद्भुत संगम..

जैसे ही दीपावली की शुभ तिथि निकट आती है, रांची का जगन्नाथपुर मंदिर मेला एक नई रौनक ले आता है. जहां दूल्हे के सर के मौर को भगवान जगन्नाथ के चरणों में समर्पित करने का रिवाज है, जिसे “मौर सिराना” या “मौर भसाना” कहते हैं. जगन्नाथपुर के इस मेले में एक विशेष परंपरा है जो वर्षों से चली आ रही है और यह परंपरा आज भी पूरे सम्मान के साथ निभाई जाती है. शादी के बाद दूल्हे राजा अपने सिर का मौर भगवान जगन्नाथ के चरणों में समर्पित करते हैं, और यह धार्मिक आयोजन माली समाज की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. मेले में शिरकत करने वाले लोग बताते हैं कि यह परंपरा संतान सुख और समृद्धि की कामना के लिए निभाई जाती है. माली समाज के लोगों का कहना है कि उनके पूर्वजों ने यह रिवाज शुरू किया था और इसे आज भी वे पूरी श्रद्धा के साथ निभा रहे हैं. इस मेले की रौनक और धार्मिक महत्व के कारण यह हर वर्ष हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है.

धुरती रथ यात्रा का आयोजन..
जगन्नाथपुर मंदिर मेला समिति ने इस वर्ष भी भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का आयोजन किया है. यह यात्रा 17 जुलाई को सुबह 5 बजे मंगल आरती के साथ शुरू होगी और दिनभर विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों के साथ चलती रहेगी. 18 जुलाई को 2:50 बजे से दर्शन शुरू होंगे और सभी मुर्तियों को रथ के लिए प्रस्थान कराया जाएगा. 3:00 बजे तक भगवान का श्रृंगार होगा और 4:00 बजे रथ का प्रमुख मंदिर के लिए प्रस्थान होगा.

माली समाज की भूमिका..
इस मेले में माली समाज की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. यह समाज रथ यात्रा की सजावट, मौर की तैयारी और आयोजन में सक्रिय भागीदारी करता है. माली समाज के लोगों का कहना है कि यह परंपरा उनके समाज की संस्कृति और पहचान का एक अभिन्न हिस्सा है. वे इस परंपरा को पीढ़ियों से निभा रहे हैं और इसे आने वाली पीढ़ियों को भी सिखा रहे हैं.

मौर पहनने की परंपरा..
मेले में शामिल होने वाले लोगों का कहना है कि मौर पहनने की परंपरा बहुत पुरानी है। यह परंपरा विशेष रूप से विवाह के बाद के समय से जुड़ी है. नवविवाहित जोड़े मौर पहनकर मेले में आते हैं और इसे भगवान के चरणों में समर्पित करते हैं. मौर पहनना समाज में समृद्धि और संतान सुख का प्रतीक माना जाता है.

सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व..
माली समाज के लोग बताते हैं कि मौर पहनने की यह परंपरा उन्हें उनके पूर्वजों से मिली है. यह परंपरा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि समाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है. इस परंपरा के माध्यम से वे अपने समाज में एकता और भाईचारे का संदेश देते हैं.

आधुनिकता और परंपरा का मेल..
आज के आधुनिक युग में भी माली समाज इस परंपरा को पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ निभा रहा है. उन्होंने आधुनिकता के साथ परंपरा का मेल कर इसे और भी आकर्षक बना दिया है. मेले में आने वाले लोग भी इस परंपरा को सराहते हैं और इसमें शामिल होते हैं.

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