रांची: झारखंड के 14 लोकसभा सीटों पर हार-जीत का गणित समझना इस चुनाव में काफी मुश्किल भी रहा है और काफी दिलचस्प भी। सभी सीटों पर मुकाबला न तो एकतरफा रहा है और न ही निराश। 2019 के लोकसभा चुनाव में 14 में से 12 सीटों पर बीजेपी गठबंधन ने कब्जा किया था। तो वही कांग्रेस ने चाईबासा और जेएमएम ने साहिबगंज सीट पर जीत दर्ज किया था। इस बार कई सीटों पर पिछले चुनाव के मुकाबले समीकरण बदले नजर आये इसलिए चुनाव रोचक हो गया।
जानिये कहां कौन जीत रहा है..
14 लोकसभा सीटों पर कौन बीस रहा है और पिछड़ गया इसको जानने के लिए हम सबसे पहले प्रथम चरण में हुए लोकसभा की चार सीटों पर बारी बारी से अध्ययन करेंगे। पहले चरण में लोहरदगा, खूंटी, चाईबासा और पलामू सीट पर चुनाव हुआ।
लोहरदगा सीट से कांग्रेस ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत को एक बार फिर उम्मीदवार बनाया था, पिछली बार वो बहुत कम अंतर से बीजेपी उम्मीदवार सुदर्शन भगत से चुनाव हार गये है। इस चुनाव में बीजेपी ने सुदर्शन की जगह समीर उरांव को उम्मीदवार बनाया था। वही जेएमएम से बागी होकर चमरा लिंडा के चुनाव लड़ने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया। लोहरदगा की जमीनी राजनीति को समझने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि चमरा लिंडा को जरूर वोट मिले लेकिन उतने नहीं मिले कि वो कांग्रेस उम्मीदवार का खेल खराब कर दे। वैसे भी लोहरदगा में पिछले कई चुनाव से मुकाबला बहुत नजदीकी जाकर ही खत्म होता रहा है, ऐसे में माना जा रहा है कि बहुत ही नजदीकी मुकाबले में कांग्रेस उम्मीदवार चुनाव जीत सकते है।
पलामू में बीजेपी के बीडी राम और आरजेडी के ममता भुईयां के बीच सीधा मुकाबला रहा है लेकिन माना जा रहा है कि वहां एक बड़े अंतर से बीडी राम जीत की हैट्रिक लगा सकते है। खूंटी लोकसभा सीट जहां से केंद्रीय मंत्री और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा बीजेपी के टिकट परएक बार फिर चुनाव मेैदान में है, वहां मामला फंसा हुआ नजर आ रहा है। 2019 का चुनाव भी अर्जुन मुंडा कांग्रेस के कालीचरण मुंडा से बहुत कम अंतर से जीते थे, इस बार खूंटी संसदीय क्षेत्र से आई ग्राउंड रिपोर्ट बताती है कि मुंडा यहां कांग्रेस उम्मीदवार कालीचरण मुंडा से चुनाव हार सकते है। चाईबासा सीट पर चुनाव इसबार दिलचस्प रहा है पिछली चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीतकर आई गीता कोड़ा इस बार बीजेपी की उम्मीदवार थी वही इनके खिलाफ जेएमएम से पूर्व मंत्री जोबा मांझी चुनाव मैदान में थी। दोनों के बीच कांटे के मुकाबले में जोबा मांझी के जीत का दावा किया जा रहा है।
दूसरे चरण में जानिये किसने ली बढ़त..
लोकसभा के दूसरे चरण में चतरा, हजारीबाग और कोडरमा सीट पर चुनाव हुआ। इन तीनों सीट पर दोनों गठबंधन के बीच जबदस्त मुकाबला देखने को मिला। चतरा सीट पर बीजेपी ने अपने सांसद का टिकट काटकर कालीचरण सिंह को चुनाव मैदान में उतारा तो कांग्रेस ने पूर्व मंत्री केएन त्रिपाठी को इस सीट चुनाव लड़ाया। दोनों नये उम्मीदवार के बीच चुनाव प्रचार के शुरूआती दौर में केएन त्रिपाठी बीजेपी उम्मीदवार के मुकाबले बहुत पीछे नजर आ रहे थे, रांची में हुए उलगुलान रैली के दौरान में मंच के सामने त्रिपाठी समर्थक और आरजेडी समर्थकों के बीच झड़प हो गई जिसके बाद केएन त्रिपाठी के उम्मीदवारी पर सवाल तक उठने लगे थे, लेकिन जैसे जैसे चुनाव आगे बढ़ा वैसे वैसे त्रिपाठी मुकाबले में मजबूत होते चले गये। माना जाता है कि सुनील सिंह का बीजेपी से टिकट कटने से नाराज हुए राजपूत वोटरों के बड़े हिस्से ने कांग्रेस उम्मीदवार को अपना वोट दिया और समीकरण को बदल दिया। ऐसे में कांग्रेस उम्मीदवार रेस में बीजेपी पर बढ़त बनाये नजर आ रहे है।
कोडरमा सीट पर केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी एक बार फिर बीजेपी के टिकट से चुनाव मैदान में थी तो इंडिया गठबंधन की ओर से माले विधायक विनोद सिंह उम्मीदवार थे। दोनों नेताओं के बीच हुए आमने-सामने की टक्कर नजर आया। जहां एक ओर अन्नपूर्णा देवी के साथ यादव वोट बैंक छिटकता नजर आया, वही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर उन्हे अच्छा खास वोट मिला। गांडेय, बिगोदर, राजधनवार विधानसभा क्षेत्र में विनोद सिंह के समर्थन में खूब वोट पड़े। दोनों उम्मीदवारों के बीच हुए जबदस्त और नजदीकी मुकाबले में माना जा रहा है कि अन्नपूर्णा देवी जीत दर्ज कर सकती है।
हजारीबाग सीट का चुनाव भी बहुत दिलचस्प नजर आया। वहां बीजेपी ने जयंत सिन्हा का टिकट काटकर विधायक मनीष जायसवाल को उम्मीदवार बनाया था। वही बीजेपी से विधानसभा चुनाव जीते मांडू विधायक जयप्रकाश भाई पटेल को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया था। जातिगत समीकरण के अनुसार देखे तो जेपी पटेल का चयन कांग्रेस ने सही किया था, लेकिन हजारीबाग बीजेपी का गढ़ रहा है। यहां बरकागांव विधानसभा सीट क्षेत्र में कांग्रेस की जगह बीजेपी को अच्छी खासी संख्या में वोट मिलने की बात कही जा रही है। लेकिन हजारीबाग सीट पर माना जा रहा है कि युवा नेता जयराम महतो के उम्मीदवार ने कई समीकरण बिगाड़ दिये और उसे उम्मीद से कही ज्यादा वोट मिला ऐसी बाते आ रही है। ऐसे में दोनों उम्मीदवार के बीच जबदस्त टक्कर में किसे जीत मिलेगी और किसकी हार होगी ये कहना बहुत मुश्किल नजर आ रहा है।
तीसरा चरण में कौन पड़ा 20 जानिये..
तीसरे चरण में रांची, धनबाद, जमशेदपुर और गिरिडीह सीट पर चुनाव हुआ। इसमें रांची की सीट पर मुकाबला लगभग एकतरफा नजर आया। इस सीट पर बीजेपी के संजय सेठ से मुकाबला करने के लिए कांग्रेस की ओर से पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय की बेटी यशस्विनी सहाय चुनाव मैदान में थी। इस सीट पर जहां एक ओर पीएम मोदी ने रोड़ शो किया था तो दूसरी ओर कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में प्रियंका वांड्रा ने भी रोड़ शो किया था। यहां माना जा रहा है कि मोदी का मैजिक खूब चला है, कांग्रेस उम्मीदवार का विलंब से चयन ने यशस्विनी को संजय सेठ मुकाबले बहुत पीछे कर दिया। हालांकि इस सीट पर जयराम महतो के उम्मीदवार देवेंद्र महतो ने चुनाव को रोचक बनाने की पूरी कोशिश की लेकिन संजय सेठ लड़ाई में बहुत आगे नजर आये। जमशेदपुर सीट पर भी कहानी लगभग रांची के जैसा ही नजर आया जहां बीजेपी की ओर से विद्युतवरण महतो एक बार फिर चुनाव मैदान में थे तो वही जेएमएम की ओर से विधायक समीर मोहंती जोर लगाते नजर आये। इस सीट पर जेएमएम द्वारा अंतिम समय में उम्मीदवार की घोषणा की गई थी जिस वजह से समीर मोहंती उस तरीके से चुनाव नहीं लड़ सके और अधूरी चुनाव तैयारी की वजह से वो चुनाव में पिछड़ गये। यहां बीजेपी उम्मीदवार के समर्थन में प्रधानमंत्री ने रैली भी किया था और पीएम मोदी के नाम पर माना जा रहा है कि बीजेपी उम्मीदवार को खूब वोट मिले। हालांकि इंडिया गठबंधन की ओर से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने यहां रैली की थी लेकिन उसका कुछ खास असर जमशेदपुर के चुनाव परिणाम में नहीं देखने को मिला।
झारखंड का सबसे रोचक चुनाव गिरिडीह संसदीय सीट पर देखा गया जहां पूरी तौर पर त्रिकोणीय मुकाबला नजर आया। छात्र नेता जयराम महतो ने इस सीट को हॉट सीट बना दिया था, जिस तरह से जयराम महतो के साथ भीड़ नजर आती थी वो दोनों विरोधी पार्टियों के लिए चिंता का कारण बनते रहा। जयराम महतो को लेकर खासतौर पर युवा वोटरों में गजब का जूनून देखा गया। जयराम महतो को कितना वोट मिला और उसने साथ किस पार्टी के वोटर जुड़े ये कहना अभी जल्दीबाजी होगी लेकिन माना जा रहा है कि उसने आजसू पार्टी के उम्मीदवार और सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी का खेल खराब किया। गिरिडीह सांसद को लेकर वोटरों में नाराजगी का फायदा जयराम को खूब मिला लेकिन क्या उसे इतने वोट मिले की वो इतिहास बनाते हुए जीत दर्ज कर रहे है ये कहना मुश्किल है। हालांकि चंद्रप्रकाश चौधरी को प्रधानमंत्री के नाम पर भरपूर वोट मिले, माना तो ये जा रहा है कि चंद्रप्रकाश को जितने वोट मिले उसका 90 फीसदी सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर मिले। वही जेएमएम की ओर से पूर्व मंत्री मथुरा महतो उम्मीदवार थे जिनके बारे में कहा जा रहा है कि उनको जयराम के चुनाव में उतरने का फायदा मिला है, क्या उनको इतना फायदा मिला है कि वो एक नंबर पर जाकर जीत दर्ज कर रहे है कहना आसान नहीं है। इसलिए गिरिडीह में हुए त्रिकोणीय मुकाबले में जीत हार का फासला जयराम को मिले वोट से तय होगा।
धनबाद सीट पर इस बार कांग्रेस और बीजेपी ने नये उम्मीदवार दिये इसका असर इस चुनाव में देखने को मिला। बीजेपी ने बाघमारा विधायक ढुल्लू महतो को उम्मीदवार बनाया तो कांग्रेस ने बेरमो से विधायक जयमंगल सिंह उर्फ अनूप सिंह की पत्नी अनुपमा सिंह को टिकट दिया। दोनों की उम्मीदवार का बैकग्राउंड कोयला मजदूर संघ से रहा है। जहां ढुल्लू महतो खुद को मजदूरों का नेता कहते है तो वही अनुपमा सिंह के पति अनूप सिंह और ससुर दिवंगत पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह मजदूर संगठन इंटक से जुड़े है। ढुल्लू महतो के खिलाफ कई मामले दर्ज है जिसको लेकर सरयू राय से लेकर कांग्रेस उम्मीदवार तक हमलावर पूरे चुनाव प्रचार के दौरान नजर आये। ढुल्लू की क्षवि का नुकसान धनबाद की सीट पर बीजेपी को होता हुआ नजर आया। धनबाद से बीजेपी के सांसद पीएन सिंह का टिकट कटना और कांग्रेस का अनुपमा सिंह को टिकट देना राजपूत जाति के वोटरों को कांग्रेस की ओर खींचने का काम करता हुआ नजर आया। माना जाता है कि राजपूत के साथ अपर कास्ट के वोटरों का एक हिस्सा कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में खड़ा नजर आया। निरसा विधानसभा क्षेत्र जहां पिछली बार बीजेपी को भारी बढ़त मिली थी वहां भी बीजेपी का बढ़त घटा है। इस सीट पर बीजेपी उम्मीदवार की छवि का नुकसान जहां बीजेपी को चुनाव में हुआ वही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर भी बीजेपी उम्मीदवार को जबदस्त वोट मिला। इस सीट के पर कांटे के मुकाबले में जीत हार का अंतर बहुत कम हो सकता है, ऐसे में माना जा रहा है कि बहुत कम अंतर से ही अनुपमा सिंह चुनाव जीत जाएंगी।
JMM का गढ बचा या नहीं..
लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में संताल परगना के तीन सीटों पर चुनाव हुआ। संताल जो जेएमएम का गढ़ माना जाता है वहां हुए तीन सीटों पर चुनाव का परिणाम काफी रोचक हो सकता है। राजमहल की सीट पर जेएमएम की ओर से विजय हांसदा उम्मीदवार है और बीजेपी की ओर से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी चुनाव मैदान में उतरे है। इन दोनों के बीच मुकाबला को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश जेएमएम के बागी विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने की लेकिन माना जा रहा है कि वो उतना नुकसान करते हुए नजर नहीं आये जितना वो दावा करते थे। इस सीट पर बीजेपी ने अपने उम्मीदवार 2019 के मुकाबले बदल दिये थे, पिछले चुनाव में हेमलाल मुर्मू बीजेपी के उम्मीदवार बने थे जो अब जेएमएम में है, ताला मरांडी को उम्मीदवार बनाने का बहुत फायदा राजमहल सीट पर बीजेपी को मिलता हुआ नजर नहीं आया।
दुमका और गोड्डा सीट के चुनाव परिणाम पर झारखंड ही नहीं पूरे देश की नजर है क्योकि इस सीट पर बीजेपी की ओर से दो बड़े नाम चुनाव मैदान में है। दुमका से जेएमएम अध्यक्ष शिबू सोरेन की बड़ी बहू बीजेपी के टिकट पर उम्मीदवार बनी वहां बीजेपी ने सुनील सोरेन का टिकट काटकर सीता सोरेन को उम्मीदवार बनाया है वही जेएमएम की ओर से नलिन सोरेन उम्मीदवार है। दोनों के बीच कांटे का मुकाबला देखने को मिला और माना जा रहा है कि बहुत ही नजदीकी मुकाबला है और जीत-हार का अंतर कम हो सकता है। दुमका की सीट शिबू सोरेन परिवार की पारंपरिक सीट रही है। अगर सीता सोरेन चुनाव जीतती है तो ये सीट कहने के लिए सोरेन परिवार के पास ही रह सकती है लेकिन अगर उनकी हार होती है तो शिबू सोरेन की पार्टी के खाते में ये सीट चली जाएगी। कांटे की टक्कर में इस सीट पर सीता सोरेन की जीत की संभावनाएं ज्यादा बताई जा रही है। सबसे ज्यादा रोचक चुनाव उस सीट पर नजर आया जो बीजेपी के लिए सबसे सुरक्षित सीट मानी जा रही थी। गोड्डा सीट पर चुनाव बहुत ही कांटे का नजर आया जहां बीजेपी की ओर से एक बार फिर निशिकांत दुबे चुनाव मैदान में थे। निशिकांत के उम्मीदवारी की घोषणा और कांग्रेस के उम्मीदवार की घोषणा के दौरान निशिकांत लड़ाई में बहुत आगे नजर आ रहे थे। मगर इस चुनाव में नाटकीय बदलाव तब आया जब निशिकांत दुबे के करीबी रहे अभिषेक आनंद झा ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरते हुए नामांकन दाखिल कर दिया। जिस आक्रामक तरीके से अभिषेक ने अपना चुनाव अभियान चलाया और निशिकांत दुबे के खिलाफ बयानबाजी की उससे निशिकांत को नुकसान होता नजर आया। अभिषेक के समर्थन में पंडा समाज के एक गुट ने भी जमकर प्रचार अभियान चलाया। वही कांग्रेस उम्मीदवार प्रदीप यादव के समर्थन में उनके पारंपरागत वोटरों ने जमकर वोटिंग की। दूसरी ओर निशिकांत दुबे को उनके क्षेत्र में कराये गए काम और प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर भी भरपूर वोट मिले। अभिषेक झा के समर्थन में आये वोटरों और कार्यकर्ताओं का कहना था कि वो मोदी के खिलाफ नहीं है बल्कि निशिकांत दुबे के खिलाफ है, अगर मोदी एक सीट हार भी जाते है तो उससे कोई नुकसान नहीं होगा केंद्र में उनकी ही सरकार बनेगी। बीजेपी समर्थक वोटरों के इस रवैये का नुकसान बीजेपी उम्मीदवार को होता हुआ गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में नजर आया। इस वजह से इस सीट पर चुनाव बहुत ही नजदीकी मुकाबले पर जाकर रूक गया और माना जा रहा है कि इस सीट पर भी जीत-हार का अंतर कम हो सकता है।