एक ओर हम जल संरक्षण की बात करते हैं, वहीं अनगड़ा के गेतलसूद डैम से पिछले 90 घटे में करीब 820 करोड़ लीटर पानी व्यर्थ बहा दिया गया। व्यर्थ बहे इस पानी से रांची वासियों को 27 दिनों तक जलापूर्ति हो सकती थी। इतने पानी से गर्मी के दिनों में होने वाले पेयजल संकट भी आसानी से दूर हो जाता। रुक्का जल शोध संस्थान से प्रतिदिन रांची को करीब 30 करोड़ लीटर पानी की आपूर्ति की जाती है। इसके अलावा जितना पानी व्यर्थ गया है उससे सिकिदिरी हाइडल प्रोजेक्ट से पीक आवर में130 मेगावाट बिजली का उत्पादन 229 दिनों तक किया जा सकता था। पीक आवर में प्रतिदिन तीन से चार घंटे तक बिजली का उत्पादन किया जाता है। इस बिजली उत्पादन से राज्य की बिजली समस्या का आसानी से समाधान हो गया होता। लेकिन इस सब बातों को ताक पर रखकर, तीन विभागों (सिंचाई, बिजली और पेयजल एवं स्वच्छता) के बीच आपसी समन्वय नहीं होने और अधिकारियों की लापरवाही के कारण पानी को व्यर्थ बहा दिया गया।
गेतलसूद डैम के स्पेलवे के फाटक संख्या चार को 21 अगस्त को दोपहर ढाई बजे खोला गया था। और अब जबतक इस डैम का वाटर लेवल 30 फीट से नीचे नहीं आ जाता, पानी छोड़ा जाता रहेगा। चालीस फीट लंबे और चालीस फीट चौड़े रेडियल गेट को करीब एक फीट खोला गया है, साथ ही कई गेट में लीकेज भी है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, प्रतिघंटे रेडियल गेट से 9 करोड़ लीटर पानी बहाया जा रहा है। जबकि गेतलसूदनहर भी चौबीसों घंटे खुली हुई है। इस नहर से बिजली उत्पादन के लिए प्रति घंटे 90 लाख लीटर पानी सिकिदिरी हाइडल प्रोजेक्ट को जाता है। इससे पावर हाउस एक व दो में कुल मिलाकर 130 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जाता है। व्यर्थ बहाए जा रहे पानी से पेयजल आपूर्ति करके व बिजली उत्पादन करके सरकार करोड़ों रुपये राजस्व प्राप्त कर सकती थी। लेकिन ये सब कुछ पानी में बह गया।
एसआरएचपी सिकिदिरी परियोजना के प्रबंधक प्रदीप शर्मा का कहना है कि जून माह से पीकआवर में सिकिदिरी प्राजेक्ट के द्वारा बिजली का उत्पादन किया जा रहा है। हालांकि तीन-चार दिनों की बारिश की वजह से गेतलसूद डैम के जलस्तर बढ़ गया है। इसलिए मौसम को ध्यान में रखते हुए पानी को नियंत्रित करने के लिए डैम का गेट खोला गया है। श्री शर्मा का कहना है कि डैम को सुरक्षित भी रखना है, ऐसे में आमुमन वाटर लेबल के अनुसार डैम से पानी छोड़ा जाता है।
बता दें कि, गेतलसूद डैम की जल संचय की झमता 36 फीट है। वही पिछले तीन सालों से गेतलसूद डैम पूरी तरह नहीं भरा है। दूसरी तरफ, गाद भरने व कैचमेंट एरिया में किए गए अतिक्रमण के कारण पानी भंडारण की क्षमता करीब छह फीट कम हो चुकी है। गेतलसूद डैम का नियंत्रण सिंचाई विभाग के पास है, लेकिन इससे कमाई बिजली और पेयजल स्वच्छता विभाग करता है। सिविल मेंटनेंस के लिए ऊर्जा विभाग प्रतिवर्ष बीस लाख रुपये सिंचाई विभाग को देता है। सिंचाई के नाम पर विभाग को राजस्व की प्राप्ति शून्य है। तीन साल पहले सरकार ने गेतलसूद डैम को पेयजल स्वच्छता विभाग को नियंत्रण में देने का निर्णय लिया था|लेकिन कतिपय कारणों से निर्णय ठंडे बस्ते में चला गया।