जामताड़ा, झारखंड। जिले के नारायणपुर प्रखंड क्षेत्र में एक बड़ा हादसा सामने आया है, जहां 45 साल पुराना एक पुल भारी बारिश के कारण ध्वस्त हो गया। यह पुल जामताड़ा और आसपास के सैकड़ों गांवों को जोड़ने वाला एकमात्र मार्ग था। पुल के ध्वस्त होते ही पूरे क्षेत्र में आवागमन पूरी तरह बाधित हो गया है और ग्रामीणों में आक्रोश और चिंता का माहौल है।
बताया जा रहा है कि यह पुल पिछले 11 दिनों से क्षतिग्रस्त स्थिति में था। क्षेत्र में हुई मूसलधार बारिश के कारण इसकी नींव कमजोर हो गई थी। स्थानीय लोगों ने प्रशासन को कई बार चेताया भी था कि पुल कभी भी गिर सकता है, लेकिन समय पर मरम्मत कार्य शुरू नहीं हुआ। नतीजा यह हुआ कि सोमवार की सुबह अचानक पुल का एक बड़ा हिस्सा धराशायी हो गया और देखते ही देखते संपूर्ण संरचना ढह गई।
सैकड़ों गांवों का टूटा संपर्क
इस पुल के ध्वस्त हो जाने से नारायणपुर, फतेहपुर, देवरी, जोरापोखर, बलियापुर, धनगांव जैसे दर्जनों पंचायतों और सैकड़ों गांवों का जिला मुख्यालय से संपर्क कट गया है। स्कूल जाने वाले बच्चे, मरीज और दैनिक यात्री अब वैकल्पिक मार्गों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जो कि या तो काफी लंबे हैं या दुर्गम।
स्थानीय निवासी रविशंकर महतो ने बताया, “हमलोग पिछले कई दिनों से जिला प्रशासन से गुहार लगा रहे थे, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। अब हमें खेतों के बीच से पैदल चलकर कई किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ रहा है। अगर किसी को इमरजेंसी में अस्पताल ले जाना हो, तो रास्ता ही नहीं है।”
प्रशासन की लापरवाही पर उठे सवाल
घटना के बाद जिला प्रशासन हरकत में आया है और मौके पर अधिकारियों की टीम भेजी गई है। लेकिन ग्रामीणों का गुस्सा अब प्रशासन पर फूट पड़ा है। उनका आरोप है कि अगर समय रहते पुल की मरम्मत की जाती, तो यह हादसा टाला जा सकता था।
एक अन्य ग्रामीण महिला सुनीता देवी ने बताया, “बारिश के बाद पुल में दरारें साफ नजर आ रही थीं। पंचायत से लेकर प्रखंड कार्यालय तक हमने शिकायत की थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब जब सबकुछ तबाह हो गया, तो अधिकारी आकर सर्वे कर रहे हैं।”
क्या कहते हैं प्रशासनिक अधिकारी
इस घटना को लेकर नारायणपुर बीडीओ ने कहा, “हमें इस पुल की स्थिति की जानकारी मिली थी, लेकिन प्रक्रिया के तहत मरम्मत कार्य की फाइल उच्च अधिकारियों के पास लंबित थी। अब जिला प्रशासन के निर्देश पर तुरंत वैकल्पिक रास्ता बनाने और नये पुल के निर्माण की योजना पर काम शुरू कर दिया गया है।”
राजनीतिक प्रतिक्रिया
इस घटना को लेकर विपक्ष ने राज्य सरकार और प्रशासन को घेरा है। भाजपा के स्थानीय विधायक ने कहा कि यह घटना सरकार की घोर लापरवाही का परिणाम है। उन्होंने इसे मानव निर्मित आपदा बताया और तत्काल पीड़ित गांवों के लिए राहत कार्य और नए पुल के निर्माण की मांग की।
अस्थायी वैकल्पिक व्यवस्था की कोशिश
जिला प्रशासन ने फिलहाल एक अस्थायी बांस-लकड़ी का पुल बनाने की योजना शुरू की है, जिससे पैदल यात्री और छोटे वाहनों की आवाजाही किसी तरह संभव हो सके। लेकिन यह समाधान स्थायी नहीं है और बारिश में यह भी जोखिम भरा हो सकता है।
यह घटना झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे की जर्जर स्थिति और प्रशासनिक उदासीनता की पोल खोलती है। जहां एक ओर ग्रामीण वर्षों पुराने पुलों पर निर्भर हैं, वहीं समय रहते मरम्मत या पुनर्निर्माण नहीं होने से ऐसे हादसे आम हो रहे हैं। यह समय है कि सरकार इस ओर गंभीरता से ध्यान दे और ग्रामीण सड़कों-पुलों की दशा सुधारने के लिए ठोस कदम उठाए।